ऐसी 'जेल', जहां खतरनाक आदमखोर जानवर काट रहे 'सजा', मंगलवार को रखते हैं 'उपवास'
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर जंगल के खूंखार शिकारी कायदे तोड़ें, तो उनका क्या होता है? जी हां, उत्तराखंड में एक ऐसी अनोखी 'जेल' है, जहां इंसानों के लिए खतरा बन चुके खतरनाक जानवर सजा भुगत रहे हैं।
जानिए कहां है यह 'खास जेल'
हरिद्वार जिले के चिड़ियापुर रेस्क्यू सेंटर की कहानी कुछ अलग ही है। उत्तराखंड वन विभाग ने करीब 35 हेक्टेयर में फैले इस सेंटर की शुरुआत घायल जानवरों के इलाज के लिए की थी। लेकिन वक्त के साथ यह जगह उन आदमखोर गुलदारों का ठिकाना बन गई, जिन्होंने इंसानों को अपना शिकार बनाया था। आज यहां 14 से ज्यादा गुलदार सलाखों के पीछे एक नया जीवन जी रहे हैं।
सलाखों के पीछे कैद हैं खूंखार शिकारी
पहले इस सेंटर में सिर्फ 6 गुलदारों के लिए जगह थी, लेकिन नागरिकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अब इसकी क्षमता बढ़ाई गई है और अब यहां 16 से भी ज्यादा गुलदार रखने की क्षमता है। पौड़ी, जोशीमठ, कोटद्वार और हरिद्वार जैसे इलाकों से पकड़े गए ये शिकारी आज इस रेस्क्यू सेंटर के बाड़ों में वन विभाग की देखरेख में रह रहे हैं।
जेल में भी हो रही है शानदार आवभगत
वरिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. अमित ध्यानी और उनकी टीम इन आदमखोरों की सेवा में पिछले दस सालों से लगे हुए हैं। उनके मुताबिक, यहां का माहौल इन गुलदारों के लिए इतना अनुकूल है कि उनकी औसत उम्र जंगल में रहने वाले गुलदारों से भी ज्यादा हो रही है।यहां के गुलदारों के नाम भी बड़े दिलचस्प हैं — रॉकी, जोशी, मोना, रूबी, दारा और सिंबा। पहले के गुलदार जैसे हिना और सुंदर भी यहीं अपने जीवन का अंतिम समय बिता चुके हैं।
मोना और दारा की दिलचस्प कहानी
बाड़े में रहने वाली गुलदार मोना जब सिर्फ चार साल की थी, तब उसे पौड़ी से पकड़ा गया था। उसने उस समय चार लोगों पर हमला किया था। लेकिन आज, 15 साल की उम्र पार कर चुकी मोना यहां की जिंदगी में पूरी तरह ढल चुकी है।
वहीं, दारा नाम का एक और गुलदार पोखाल से लाया गया था, जिसने तीन लोगों को अपना शिकार बनाया था। आज वह भी 80 किलो से ज्यादा वजन का स्वस्थ गुलदार बन चुका है।इनकी सेहत का राज है — समय पर दिया जाने वाला खाना, नियमित मेडिकल चेकअप और एक बेहतर दिनचर्या।
मंगलवार का 'उपवास' — सेहत का राज
इस रेस्क्यू सेंटर में एक बेहद दिलचस्प परंपरा है — मंगलवार को गुलदारों का उपवास। जी हां, इंसानों की तरह ये जानवर भी हफ्ते में एक दिन फास्टिंग करते हैं। डॉ. ध्यानी बताते हैं कि उपवास से शरीर के भीतर की शुद्धि होती है और मेटाबॉलिज्म दुरुस्त रहता है। बाकि के दिनों में इन गुलदारों को अलग-अलग समय पर तरह-तरह का मीट खिलाया जाता है। उनकी देखभाल में करीब 7 से 10 लोग हर वक्त तैनात रहते हैं।
जंगल में छोड़ना क्यों नहीं होता मुमकिन?
एक बार जो गुलदार इंसानों का स्वाद चख लेता है, उसे फिर जंगल में वापस छोड़ना खतरे से खाली नहीं होता। डॉ. ध्यानी साफ कहते हैं कि अगर इन्हें दोबारा जंगल में छोड़ा गया, तो ये फिर से इंसानों पर हमला कर सकते हैं। इसीलिए, इन्हें जीवनभर के लिए चिड़ियापुर के इस बाड़े में सुरक्षित रखा गया है, जहां ये बिना किसी खतरे के अपनी बाकी जिंदगी गुजार रहे हैं।