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इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर बवाल – अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति ने जताई कड़ी आपत्ति

05:04 PM Mar 22, 2025 IST | Newsdesk Uttranews
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📰 इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक हालिया फैसले पर विवाद खड़ा हो गया है। मामला एक नाबालिग बच्ची के साथ कथित बलात्कार के प्रयास से जुड़ा है, जिसमें हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए इसे सिर्फ छेड़खानी का मामला करार दिया है। इस फैसले पर अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (अल्मोड़ा) ने कड़ी आपत्ति जताई है और इसे महिला गरिमा के खिलाफ बताते हुए उच्चतम न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग की है।

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◆ ⚖️ फैसले पर कड़ी आपत्ति
महिला समिति की राज्य अध्यक्ष सुनीता पांडे ने कहा कि हाईकोर्ट का यह फैसला असंवैधानिक और महिला गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला है। उनका कहना है कि इस फैसले से बलात्कारियों के हौसले बुलंद होंगे और इससे समाज में महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा पर नकारात्मक असर पड़ेगा।

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◆ 👧 नाबालिग के बयान को किया नजरअंदाज
मामले में पीड़िता ने खुद बयान दिया था कि आरोपियों ने उसके प्राइवेट अंगों को छूने के साथ-साथ उसे निर्वस्त्र करने की भी कोशिश की थी। राह चलते चश्मदीदों के हस्तक्षेप के बाद आरोपी वहां से भाग गए थे। इसके बावजूद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसे सिर्फ छेड़खानी का मामला करार दिया, जिससे महिला समिति में रोष है।

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◆ ⚖️ ट्रायल कोर्ट के फैसले को किया खारिज
ज्ञात हो कि कासगंज ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में आरोपियों के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज किया था, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसे पलटते हुए इसे केवल पोक्सो एक्ट के तहत छेड़खानी का मामला करार दिया। महिला समिति ने इसे असंवैधानिक और आपत्तिजनक बताया है।

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◆ 🔎 वर्मा कमेटी की सिफारिशों की अनदेखी
महिला समिति ने इस फैसले को निर्भया कांड के बाद गठित जे.एस. वर्मा कमेटी की सिफारिशों के खिलाफ बताया है। वर्मा कमेटी ने स्पष्ट किया था कि नाबालिग के बयान को ही पर्याप्त सबूत माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी एक फैसले में कहा था कि नाबालिग बच्ची के प्राइवेट अंगों को गलत नीयत से छूना बलात्कार के तहत आएगा

◆ 👨‍⚖️ सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग
अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति ने मांग की है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट इस फैसले का स्वतः संज्ञान ले और कासगंज ट्रायल कोर्ट के फैसले को बहाल करते हुए आरोपियों को सख्त सजा दी जाए।

महिला समिति का कहना है कि इस फैसले से समाज में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा और असुरक्षा की भावना बढ़ेगी। अगर इस फैसले पर जल्द से जल्द कार्रवाई नहीं की गई तो इससे अपराधियों के हौसले और बढ़ेंगे।

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