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मां की ममता की मिसाल  अपने बच्चे की जिंदगी बचाने के लिए मां ने दी अपनी हड्डी

मां की ममता की मिसाल: अपने बच्चे की जिंदगी बचाने के लिए मां ने दी अपनी हड्डी

01:27 PM Jan 31, 2025 IST | editor1
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एक मां के लिए उसका बच्चा उसकी पूरी दुनिया होता है। उसकी हंसी और खुशी के लिए मां किसी भी हद तक जा सकती है। मेरठ की रहने वाली शालू ने इसी ममता की अनोखी मिसाल पेश की, जब उन्होंने अपने बच्चे की जान बचाने के लिए अपनी ही हड्डी दान कर दी। उनका पांच महीने का बेटा गंभीर बीमारी से जूझ रहा था और डॉक्टरों ने उसकी सर्जरी के लिए बोन ग्राफ्ट की जरूरत बताई। बिना एक पल सोचे, शालू ने अपनी कमर की हड्डी अपने बेटे को देने का फैसला किया।

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कैसे शुरू हुई यह जंग?

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शालू का बेटा जन्म से ही गंभीर समस्या से जूझ रहा था। उसका वजन सामान्य से ज्यादा था, और डिलीवरी के दौरान उसे बाहर निकालते समय उसकी गर्दन की हड्डी टूट गई थी। जन्म के बाद यह समस्या तुरंत पकड़ में नहीं आई, लेकिन कुछ दिनों बाद जब बच्चे को हाथ हिलाने में दिक्कत हुई और सांस लेने में परेशानी होने लगी, तो उसे डॉक्टर के पास ले जाया गया।

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पहले हलद्वानी और फिर दिल्ली एम्स में जांच के बाद पता चला कि बच्चे की गर्दन की हड्डी न केवल टूटी है, बल्कि उसकी स्पाइन भी डिस्लोकेट हो गई है। यह स्थिति बेहद गंभीर थी और तुरंत सर्जरी की जरूरत थी।

मां ने दी अपनी हड्डी, 15 घंटे चली सर्जरी

एम्स के न्यूरो सर्जन डॉ. दीपक गुप्ता और उनकी टीम ने बच्चे का ऑपरेशन करने का फैसला किया। लेकिन मुश्किल यह थी कि इतने छोटे बच्चे की हड्डियां बहुत नाजुक होती हैं और उसके लिए उपलब्ध ट्रांसप्लांट सिर्फ तीन साल से बड़े बच्चों के लिए ही होते हैं। ऐसे में मां शालू से उनकी कमर की हड्डी (Iliac Crest Bone) लेने का निर्णय किया गया।

बिना किसी झिझक के शालू ने अपनी हड्डी दान करने के लिए सहमति दे दी। यह सर्जरी करीब 15 घंटे तक चली और डॉक्टरों ने मां की हड्डी को बच्चे की स्पाइन में लगाया।

11 महीने वेंटिलेटर पर, अब धीरे-धीरे रिकवरी

सर्जरी के बाद बच्चे को करीब 11 महीने तक वेंटिलेटर पर रखा गया। डॉक्टर्स और मां दोनों ने उसकी जिंदगी बचाने के लिए दिन-रात मेहनत की। 10 मई 2023 को, पूरे 11 महीने बाद, बच्चे को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। हालांकि, अभी भी पूरी तरह से ठीक होने में समय लगेगा, लेकिन शालू का कहना है कि जब तक उनका बेटा पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो जाता, तब तक वह चैन से नहीं बैठेंगी।

डॉक्टर्स की राय

डॉ. दीपक गुप्ता के अनुसार, यह सर्जरी बेहद जटिल थी क्योंकि इतनी कम उम्र में स्पाइन सर्जरी के मामले बहुत ही दुर्लभ होते हैं। सही समय पर सही इलाज मिलने से बच्चे की जान बच सकी, और इसमें उसकी मां का योगदान सबसे बड़ा था।

मां की ममता का अटूट प्रेम

शालू ने अपनी हड्डी देकर अपने बच्चे को नई जिंदगी दी। यह घटना साबित करती है कि मां के प्यार और त्याग से बढ़कर इस दुनिया में कुछ भी नहीं। उनका यह बलिदान हर मां की ममता का प्रतीक है, जो अपने बच्चे के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।

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