नहीं रहे वरिष्ठ कथाकार सुभाष पंत
देहरादून। हिंदी के जाने माने कथाकार सुभाष पंत का सोमवार सुबह देहरादून में अपने डोभालवाला स्थित आवास में निधन हो गया। सोमवार को ही हरिद्वार में उनकी अंत्येष्टि भी संपन्न हो गई। सुभाष पंत के निधन से देश के साहित्यजगत में शोक की लहर व्याप्त है। हाल में ही उत्तराखंड सरकार ने उन्हें उनके साहित्यिक अवदान के लिए साहित्य के क्षेत्र में पहली वार शुरु किए गए सबसे बड़े राजकीय सम्मान साहित्यभूषण से सम्मानित किया था।
सुभाष पंत का जन्म 14 फरवरी को देहरादून में ही हुआ था। वह मूल रूप से कुमाऊं मंडल के रहने वाले थे। हिंदी के नई कहानी आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर सुभाष पंत बीते पांच दशक से निरंतर रचना-कर्म में संलग्न थे। वर्ष 2023 में उन्हें प्रतिष्ठित विद्यासागर साहित्य सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। आजकल वह अपनी आत्मकथा भी लिख रहे थे। सुभाष पंत के दो उपन्यास सुवह का भूला और पहाड़ चोर काफी चर्चि रहे। उनकी कई अन्य कहानियाँ पाठ्यक्रमों में शामिल हैं और उनके साहित्य पर अनेक विश्वविद्यालयों में शोध संपन्न और जारी है। सुभाष पंत ने । सन् 1961 में भारतीय वन अनुसंधान (एफआरआई) देहरादून से राजकीय सेवा की शुरुआत की थी और वह सन् 1991 में भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद देहरादून से वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।
उनकी पहली कहानी गाय का दूध वर्ष 1973 में सारिका के विशेषांक में प्रकाशित हुई थी और उस अंक की सर्वाधिक उल्लेखनीय कहानी घोषित हुई थी और अंग्रेजी समेत अनेक भाषाओं में अनूदित हुई। एक दौर में वह रंगकर्म से भी जुड़े रहे। नाट्य लेखन, निर्देशन व मंच परिकल्पना के साथ उनके हिस्से में ये सफर भी सुहाना रहा। उन्होंने चिड़िया की आँख ((नाटक) भी लिखा। वह वातायन नाट्य संस्था के संस्थापक अध्यक्ष और संवेदना साहित्य संस्था के संस्थापक सदस्य रहे। अब तक उनके करीव एक दर्जन कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके थे। जिनमें तपती हुई जमीन, चीफ के वाप की मौत, इक्कीस कहानियाँ, जिन्न और अन्य कहानियां, मुन्नीवाई की प्रार्थना, दस प्रतिनिधि कहानियां, एक का पहाड़ा, छोटा होता हुआ आदमी, इक्कीसवीं सदी की दिलचस्प दौड़ आदि शामिल हैं।