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वनों को आग से बचाने को जागरुकता   जीआईसी रैंगल और सोमेश्वर में मनाया गया चौथा ओण दिवस

वनों को आग से बचाने को जागरुकता:: जीआईसी रैंगल और सोमेश्वर में मनाया गया चौथा ओण दिवस

09:49 PM Apr 01, 2025 IST | editor1
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अल्मोड़ा:: अल्मोड़ा की जीवनरेखा कोसी नदी के उद्गम स्थल सोमेश्वर घाटी के जंगलों को आग से सुरक्षित रखने के लिए ओण , आडा तथा केडा जलने की परंपरा को समयबद्ध करने के लिए चौथा ओण दिवस आज सोमेश्वर में मनाया गया। इसके साथ ही स्याहीदेवी वन क्षेत्र के कार्यक्रम का आयोजन जीआईसी रैंगल में हुआ।

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सोमेश्वर में कार्यक्रम में पहुंचे जिलाधिकारी आलोक कुमार पांडेय ने कहा कि नदियों को बचाना हो या जंगल की आग पर काबू पाना हो ये सभी कार्य जनसहभागिता के बिना संभव नहीं है। उन्होंने जनसहभागिता पर जोर देते हुए कहा कि यह जल, जंगल और जमीन हम सभी के हैं। इनका संरक्षण करने का दायित्व भी हम सभी का है। सरकारी विभागों के साथ साथ जनसहभागिता से ही जंगल की आग पर काबु पाया जा सकता है । उन्होंने कहा कि जंगल में लगी आग को बुझाने में मशक्कत करने से अच्छा है कि हम उस आग को लगने ही न दें।
उन्होंने कहा कि देवभूमि उत्तराखंड में हमारी मातृशक्ति हर क्षेत्र में अग्रणी रहती है। उन्होंने कहा कि हमें ऐसे अराजक तत्वों की भी पहचान करनी होगी जो जंगल की आग में शामिल होते हैं। जिलाधिकारी ने कहा कि प्रशासन एवं वन विभाग लगातार जंगल को बचाने के लिए संकल्पित है। जंगल की आग में शामिल अराजक तत्वों की पहचान कर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
प्रभागीय वनाधिकारी दीपक सिंह ने भी सभी से मिलजुलकर इस समस्या का समाधान करने की अपील की। उन्होंने कहा कि जंगल की आग से बहुत से नुकसान हमारे पर्यावरण को होते हैं। इससे जंगली जानवरों, पक्षियों एवं छोटे छोटे कीड़े मकोड़े भी नष्ट हो जाते हैं, जो पर्यावरण संतुलन में अपनी अपनी भूमिका अदा करते हैं।
चौथे ओण दिवस में बड़ी संख्या में ग्राम प्रहरियों, महिला मंगल दलों एवं सरपंचों ने भागीदारी की तथा सभी ने एक स्वर में जंगलों में लगने वाली आग को रोकने का आव्हान किया। वक्ताओं ने कहा कि जंगल हमारे हैं और हमको ही बचाने हैं।
अल्मोड़ा वन प्रभाग अल्मोड़ा एवं जिला आपदा प्रबंधन समिति अल्मोड़ा द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में क्षेत्रवासियों ने 1 अप्रैल के बाद ओण न जलाने का आह्वान किया। इस कार्यक्रम के आयोजन में शीतलखेत की जंगल के दोस्त समिति ने सहयोग दिया। इस समिति द्वारा कार्यक्रम में शीतलखेत मॉडल पर प्रकाश डाला तथा जंगल को बचाने के अपने अनुभव साझा किए।
इस दौरान संयोजक जंगल के दोस्त समिति गजेंद्र पाठक, तहसीलदार नेहा धपोला, पूर्व वन क्षेत्राधिकारी बलवंत सिंह साही समेत अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी तथा बड़ी संख्या में क्षेत्रवासी उपस्थित रहे।

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इधर जंगलों को वनाग्नि से बचने के लिए राजकीय इंटर कॉलेज रैंगल में चतुर्थ औंण दिवस समारोह मनाया गया। इस अवसर पर जल स्रोतों, पर्यावरण संरक्षण एवं जैव विविधता की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वनाग्नि नियंत्रण पर जनसहभागिता कार्यक्रम आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के दौरान विशेषज्ञों ने जंगलों को आग से बचाने के लिए प्रभावी वनाग्नि प्रबंधन उपायों पर चर्चा की। भविष्य में आग से बचाव हेतु विभिन्न रणनीतियों पर विचार-विमर्श किया गया। शीतलाखेत क्षेत्र से करीब डेढ़ दर्जन गांवों की महिलाओं ने इस कार्यक्रम में भाग लिया।
उनके योगदान को सराहते हुए बेहतर प्रबंधन के लिए महिलाओं को सम्मानित किया गया। साथ ही, ग्रामीणों को जागरूक करते हुए अपील की गई कि वे अपने खेतों में कूड़ा या पराली को 31 मार्च से पहले ही जलाये।
यूकाँस्ट के महानिदेशक डॉं. दुर्गेश पंत विशेषज्ञों ने बताया कि एक अप्रैल के बाद बढ़ते तापमान के कारण खेतों में जलाया गया कूड़ा जंगलों में आग लगने का मुख्य कारण बन सकता है।
इस मौके पर शीतलाखेत क्षेत्र से अनीता कनवाल, हेमा पाठक, दिनेश पाठक ने जंगलों को बचाने को अपने प्रयास व अनुभव बताए।
इस दौरान वन संरक्षक केके जोशी, मुख्य अतिथि गिरीश शर्मा, आरडी जोशी, गणेश पाठक, पूरन नेगी, गोपाल दत्त गुरुरानी, रमेश लटवाल, डॉ नीरज पंत, शंकर सिंह आदि मौजूद थे। इस मौके पर शीतलाखेत मॉडल को वृहद नजरिया अपना स्याहीदेवी मॉडल नाम देने की मांग भी की गई।

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