अल्मोड़ा, 2 नवंबर 2024अल्मोड़ा के ऐतिहासिक गांव पाटिया में इस बार भी बग्वाल खेली गई। ताकुला विकासखण्ड पाटिया गांव में सैकड़ो वर्षो से बग्वाल खेलने की पंरपरा इस बार भी निभाई गई,इस दौरान सैकड़ों ग्रामीण इस ऐतिहासिक युद्ध के गवाह बने।पाटिया,भटगांव,जाखसौड़ा,भेटुली की टीम और कोटयूड़ा, कसून की टीम के बीच में शाम लगभग 4:15 बजे शाम बग्वाल शुरू हुई और पौन घंटे तक चली। पाटिया के देवेन्द्र सिंह ने गधेरे में जाकर पानी पिया और इसके साथ ही बग्वाल समाप्त हो गई। विगत 50 वर्षों से खुद इस रोमांच का हिस्सा बन रहे बुजुर्गों ने बताया कि यह रस्म अदायगी बेहद लंबे समय से चली आ रही है। लगभग 5 बजे पाटिया के देवेन्द्र सिंह ने गधेरे में जाकर पानी पिया और इसके साथ ही बग्वाल समाप्त हो गई। विगत 50 वर्षों से खुद इस रोमांच का हिस्सा बन रहे बुजुर्गों ने बताया कि यह रस्म अदायगी बेहद लंबे समय से (अनुमानित 100 वर्षो से भी ज्यादा समय से ) चली आ रही है।यह प्रथा क्यों शुरू हुई इसका तो कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है परंतु कई दंत कथाएं प्रचलित हैं। बुजुर्गों ने बताया कि कि इस प्रथा को संवर्धित करने की बेहद आवश्यकता है क्योंकि उन्होंने इसे अपनी युवावस्था में बेहद भव्य रूप में आयोजित होते हुए देखा है, वर्तमान में सिमटता जा रहा है।पाटिया क्षेत्र के पचघटिया में खेले गये इस बग्वाल में पाटिया,भटगांव,जाखसौड़ा,भेटुली की टीम और कोटयूड़ा, कसून की टीम ने भाग लिया। जबकि क्षेत्र के दर्जनो गांवो से आये सैकड़ों लोग इस पत्थर युद्ध के गवाह बने। कुछ अन्तराल तक चला यह बग्वाल युद्ध किसी पाटिया के देवेंद्र सिंह के नदी में पानी तक पहुंचने के बाद शांत हो गया। दोनो पक्षों द्वारा एक दूसरे पर पानी छिड़कने के साथ ही बग्वाल का समापन हो गया।पाटिया और कोट्यूड़ा के बीच मूलतः खेले जाने वाले इस पत्थर युद्ध में कोटयूड़ा के साथ कसून और साथ जबकि पाटिया के साथ जाखसौड़ा,भेटुली और भटगांव के योद्धाओं ने शि्रकत की। पत्थर युद्ध का आगाज पाटिया गांव के अगेरा मैदान के गाय खेत में गाय की पूजा के साथ शुरू हुआ।मान्यता के अनुसार पिलख्वाल खाम के लोगो ने चीड़ की टहनी खेत मे गाड़कर बग्वाल की अनुमति मांगी। यह पत्थर युद्ध कबसे और क्यों खेला जा रहा है इस बारे में नयी और कुछ पुरानी पीढ़ी को भी बहुत अधिक पता नहीं है लेकिन पुरखों की इस परम्परा को निभाने के लिए आज भी लोग पूरा समय देते हैं। सम्बन्धित क्षेत्र के युवाओं में पिछले कई दिन से इस युद्ध के आयोजन के लिए तैयारी षुरू हो जाती है। मान्यता है कि वर्षो पूर्व किसी आतताई को भगाने के लिए देानो गावों के लोगों ने एकजुट होकर उसे पत्थरों से भगाया था। और बाद में उसके भाग जाने और पानी पीने की मोहलत देने के अनुरोध पर ही गांव वासियों ने उसे छोड़ा था।हालाकिं नई पीढी इस कहानी के बारे में भी ज्यादा नहीं जानती है। पत्थर युद्ध नदी के दोनों छोरों से खेला जाता है और जिस टीम का व्यक्ति सबसे पहली पानी पीने पहुंच जाता है वही टीम विजयी घोशित हो जाती है। इसके साथ ही युद्ध का समापन हो जाता है। इस युद्ध की सबसे बढ़ी खासियत यह है कि युद्ध के दौरान पत्थरों से चोटिल हो जाने वाला योद्धा किसी दवा का इस्तेमाल नहीं करता बल्कि बिच्छू घास के उबटन को घाव पर लगाया जाता है।पूर्वजों के दौर से चली आ रही यह परिपाटी जारी है। लेकिन युद्ध का आगाज कब से और किस कारण हुआ इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। यहा पर यह भी बताना जरूरी है कि सदियों से आपसी आयोजन से चल रही इस परम्परा को उभारने और चम्पावत के देवीधूरा की तर्ज पर इसका प्रचार प्रसार करने के लिये प्रशासन द्वारा कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी है इसीलिए यह आयोजन प्रसिद्धि नहीं पा सका है।45 मिनट तक चली बग्वालअल्मोड़ा। पाटिया में बग्वाल 45 मिनट तक चली। पाटिया की ओर से हेमंत कुमार,पूरन चंद्र पाण्डे,हेम चंद्र पाण्डे,देवेंद्र सिंह पिलख्वाल,सरपंच देवेन्द्र सिंह बिष्ट सहित पाटिया और भटगांव के ग्रामीणों ने बग्वाल खेली वही जाखसौड़ा और कोटयूड़ा की ओर से कुंदन सिंह,भुवन चंद्र,विनोद सिंह,विक्रम सिंह,भरत सिंह आदि ने बग्वाल युद्ध में भाग लिया।