‘गज़नवी और गौरी से नहीं बचा सके मंदिर’? सांसद के बाद अब सपा विधायक इंद्रजीत सरोज के बोल से मचा बवाल
उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है, इस बार वजह बनी है समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के वह बयान, जिन पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप लगे हैं। कौशांबी में आयोजित एक कार्यक्रम में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और मंझनपुर से विधायक इंद्रजीत सरोज के वक्तव्य ने माहौल को खासा तनावपूर्ण बना दिया है। वहीं, कुछ दिन पहले राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन के विचार भी चर्चा का विषय बने हुए हैं, जिनमें उन्होंने रामायण को लेकर सवाल खड़े किए थे।
कौशांबी में आंबेडकर जयंती के मौके पर बोलते हुए इंद्रजीत सरोज ने मंदिरों की ताकत पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर मंदिरों में सच्ची शक्ति होती, तो इतिहास में देश को विदेशी आक्रांताओं के हमले नहीं झेलने पड़ते। उन्होंने वर्तमान सरकार और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधते हुए यह भी जोड़ा कि सत्ता ही असली ताकत का केंद्र होती है, जहां आज की तारीख में मुख्यमंत्री मौजूद हैं और हेलिकॉप्टर से भ्रमण कर रहे हैं। इसी के साथ उन्होंने 'राम का नारा नहीं, जय भीम बोलो' कहते हुए दावा किया कि यही विचारधारा उन्हें बार-बार जनता की सेवा का अवसर दिलाती रही है।
सरोज ने धार्मिक साहित्य और विशेष रूप से तुलसीदास पर भी तीखा प्रहार किया। उनका कहना था कि तुलसीदास ने अपनी रचनाओं में नीची जातियों के प्रति अपमानजनक बातें लिखीं, लेकिन मुस्लिम शासकों के विरुद्ध एक भी शब्द कहने का साहस नहीं दिखाया। उन्होंने इसे दोहरे मापदंड बताते हुए समाज में व्याप्त भेदभाव की मानसिकता का हिस्सा करार दिया।
सभा के दौरान करणी सेना पर निशाना साधते हुए सरोज ने आरोप लगाया कि वह संगठन समाजवादी नेताओं को खुलेआम अपशब्द कहता है, फिर भी उस पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होती। उन्होंने दलित समाज की बेटियों की स्थिति पर भी सवाल उठाए और कहा कि आर्थिक संकट के चलते कई बार वे ऐसे फैसले लेने को मजबूर होती हैं, जिनका बोझ पूरे जीवन उन्हें उठाना पड़ता है।
इस विवाद को और गहरा बनाते हुए सपा के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन ने रामायण को लेकर ऐसा बयान दिया, जिसने धार्मिक संगठनों में तीखी प्रतिक्रिया पैदा कर दी है। उन्होंने आरोप लगाया कि राम के नाम पर दलितों और पिछड़ों को हिंसा का शिकार बनाया गया और रामायण जैसी रचनाओं ने इन वर्गों को मानसिक रूप से गुलाम बनाने का काम किया है।
भाजपा ने इन बयानों पर तीव्र विरोध जताया है। पार्टी प्रवक्ताओं ने सपा नेताओं की टिप्पणियों को हिंदू विरोधी बताते हुए कहा है कि यह समाजवादी पार्टी की पुरानी सोच का हिस्सा है, जो मंदिरों, संतों और धार्मिक विश्वासों को बार-बार निशाने पर लेती है।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि यह बयान सपा की ओर से एक खास सामाजिक वर्ग को साधने की रणनीति का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन इनका असर यूपी की राजनीति में धार्मिक ध्रुवीकरण के रूप में भी सामने आ सकता है। ऐसे में जब राज्य में अगले चुनावों की सरगर्मियां धीरे-धीरे तेज हो रही हैं, इन विवादों का राजनीतिक समीकरणों पर असर पड़ना तय माना जा रहा है।