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अल्मोड़ा : उत्तराखंड क्रांति दल के वरिष्ठ नेता व पूर्व अध्यक्ष बीडी रतूड़ी का निधन हो गया है।
विभिन्न संगठनों ने उनके निधकर पर गहरा शोक जताया है।
यूकेडी के वरिष्ठ नेता व राज्य आंदोलनकारी महेश परिहार, ब्रह्मानन्द डालाकोटी, शिवराज बनौला, गोपाल मेहता, गिरीश शाह, मुमताज कश्मीरी, देवनाथ गोस्वामी ने दल के संरक्षक बी डी रतूड़ी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है।
कार्यकर्ताओं ने स्वर्गीय रतूड़ी के निधन को उक्रांद के लिए अपूर्णीय क्षति बताते हुए कहा कि वे उक्रांद के गठन से ही उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए दल में विभिन्न पदों पर रहते हुए संघर्षरत रहे ।वह उक्रांद के केन्द्रीय अध्यक्ष भी रहे तथा भागीरथी नदी घाटी विकास बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे उक्रांद नेताओं ने स्वर्गीय रतूड़ी को श्रद्धांजलि देते हुए ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति की कामना की है तथा इस दुख की घड़ी में शोक संतप्त परिवार के साथ होने कि विश्वास ब्यक्त किया है।
इधर उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी ने राज्य आंदोलन के प्रमुख नेतृत्वकारियों में से एक, उक्रांद के पूर्व केंद्रीय अध्यक्ष बी डी रतूड़ी के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उपपा के केंद्रीय अध्यक्ष पी सी तिवारी ने कहा कि स्व बी डी रतूड़ी जी एक प्रतिबद्ध राज्य आंदोलनकारी, राज्य आंदोलन के अगुवा, शालीन व दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व के धनी रहे। एक अधिवक्ता के रूप में भी वे हमेशा पीड़ित लोगों की मदद के लिए तैयार रहते थे। बी सी खंडूरी जी की सरकार में वे भागीरथी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष भी रहे।
उपपा ने उनके निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनकी मृत्यु से हमने उत्तराखंड के एक अनुभवी नेतृत्वकारी साथी को खो दिया है जिनकी कमी हमेशा रहेगी।
वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा है-----
… और अब रतूड़ी भी चले गये
कल यूकेडी के नेता बीडी रतूड़ी का निधन हो गया। राज्य आंदोलनकारी थे और पहाड़ के लिए समर्पित योद्धा। आज उनकी आत्मा जरूर सवाल कर रही होगी कि ये राज्य मिला भी तो क्या? जो अवधारणा थी, वह पूरी नहीं हुई और न ही वो इतिहास का हिस्सा ही बन सके। एक दल जो दल-दल में डूबा है, ताउम्र महज उसके समर्पित योद्धा बनकर जुटे रहे, मैदान में डटे रहे।
मुझे याद है अंकिता भंडारी हत्याकांड के बाद हम पलटन बाजार बंद करा रहे थे। बीडी रतूड़ी बीमार थे और कार में बैठे-बैठे ही नारे लगा रहे थे। दुकानें बंद कराते हम आगे बढ़ रहे थे और वो साथ-साथ थे। यह उनका समर्पण था कि शरीर जवाब दे रहा था, लेकिन वो मन, कर्म और वचन से पहाड़ की माटी और थाती के लिए समर्पित थे। तभी तो अंकिता भंडारी को न्याय दिलाने की मांग को लेकर प्रदर्शन में शामिल थे।
मैं पिछले 14 साल से देहरादून में हूं। देख रहा हूं, कैसे रणजीत वर्मा का निधन हुआ। सुशीला बलूनी भी चली गयीं। पहाड़ के गांधी इंद्रमणि बडोनी का निधन मेरे दून आने से पहले हो चुका था। वेद उनियाल का निधन हुआ। उससे पहले विपिन त्रिपाठी भी चले गये। राज्य आंदोलन के दिग्गज नेता एक-एक कर विदाई ले रहे हैं लेकिन न राज्य की अवधारणा पूरी हुई और न ही हम आज की नवयुवा पीढ़ी को बता सके कि ये जो घंटाघर पर सरे बाजार मूर्ति लगी है, ये किसकी है? इस व्यक्ति का राज्य गठन में क्या योगदान रहा?
बता दूं कि यूकेडी ने अपनी जड़ो को छोड़ा, तो यह हाल है। भले ही यूकेडी चिल्लाती रहे कि राज्य हमने बनाया, लेकिन किसको पता। यूकेडी ने विगत दस साल में एक भी आंदोलन या जनयात्रा नहीं की कि पहाड़ या प्रदेश की नई पीढ़ी को पता चल सके कि राज्य गठन में यूकेडी सबसे आगे थी। यदि यूकेडी ने पहाड़ में मजबूती से पांव जमाए होते तो आज ये सब नेता स्कूली पाठ्यक्रम में होते। राज्य आंदोलन पाठ्यक्रम का हिस्सा होता। इन राज्य आंदोलनकारियों के निधन पर राजकीय शोक होता। स्कूलों में छुट्टी घोषित हो जाती। अपनी जड़ों को छोड़ने पर इन नेताओं को न इतिहास में जगह मिल रही है और न ही भविष्य में कोई याद करेगा। काश, यूकेडी में नेता होते, मठाधीश नहीं।
राज्य आंदोलनकारी बीडी रतूड़ी जी को विनम्र श्रद्धांजलि।