नैनीताल, 10 जनवरी: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने निकाय और पंचायत चुनावों के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी आरक्षण नियमावली 2024 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की एकलपीठ ने याचिकाकर्ताओं को 4 हफ्ते के भीतर प्रति शपथपत्र दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। इस मामले की अगली सुनवाई 3 मार्च को होगी।कोर्ट ने अंतरिम आदेश देने से किया इनकारशुक्रवार को देर शाम तक चली सुनवाई में कोर्ट ने अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि राज्य सरकार ने नियमों को नजरअंदाज करते हुए आरक्षण की अधिसूचना जारी की। अधिसूचना जारी करने के दिन ही चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी गई, जिससे आपत्ति दर्ज कराने का अवसर नहीं मिल सका।याचिकाकर्ताओं ने उठाए गंभीर सवालयाचिकाकर्ताओं ने कहा कि नियमों के अनुसार आरक्षण घोषित होने के बाद आपत्तियां दर्ज कराने का प्रावधान है, जिसका पालन नहीं किया गया। इसके अलावा, जिन निकायों और नगर निगमों में ओबीसी, एसटी और अन्य की जनसंख्या कम थी, वहां आरक्षण नहीं होना चाहिए था, जबकि अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में इसे लागू करना चाहिए था। उदाहरण के तौर पर, अल्मोड़ा में जनसंख्या कम होने के बावजूद आरक्षण लागू किया गया, जबकि देहरादून और हल्द्वानी जैसे क्षेत्रों में अधिक जनसंख्या होने के बावजूद इसे उचित रूप से लागू नहीं किया गया।सरकार ने दी अपनी दलीलराज्य सरकार की ओर से कहा गया कि निकायों में आरक्षण प्रक्रिया नियमों के तहत तय की गई है। सरकार ने याचिकाकर्ताओं के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि यह मुद्दा चुनाव याचिका के माध्यम से उठाया जाना चाहिए, न कि अन्य याचिकाओं के माध्यम से।याचिकाकर्ताओं की आपत्तियाचिकाकर्ताओं ने सरकार की इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि अभी चुनाव नहीं हुए हैं, इसलिए आरक्षण अधिसूचना को चुनौती दी गई है। याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि निकायों के अध्यक्ष पदों के लिए सरकार द्वारा अपनाई गई आरक्षण प्रक्रिया असंवैधानिक और कानूनी प्रावधानों के खिलाफ है।आरक्षण पर जनसंख्या और रोटेशन का उल्लंघन याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि राज्य सरकार ने जनसंख्या और रोटेशन के आधार पर आरक्षण सुनिश्चित नहीं किया। अब कोर्ट सभी निकायों व नगर निगमों के आरक्षण पर गहनता से सुनवाई कर रही है,और कल भी इस पर सुनवाई होगी।