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सिंधु जल संधि  क्या है इसका इतिहास  वर्तमान विवाद और भारत पाक रिश्तों पर इसका असर

सिंधु जल संधि: क्या है इसका इतिहास, वर्तमान विवाद और भारत-पाक रिश्तों पर इसका असर

01:37 PM Apr 25, 2025 IST | Newsdesk Uttranews
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भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ 1960 में हुई सिंधु जल संधि को औपचारिक रूप से निलंबित कर दिया है। इस निर्णय के बाद भारत अब पाकिस्तान को जल जानकारी साझा नहीं करेगा और संधि से जुड़ी बैठकों में भाग नहीं लेगा। यह संधि दोनों देशों के बीच जल बंटवारे को लेकर बनी थी, जिसमें भारत को रावी, ब्यास और सतलुज नदियों का और पाकिस्तान को सिंधु, झेलम व चिनाब का जल मिला था। पाकिस्तान की खेती और अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा इसी जल पर आधारित है। भारत के इस कदम से पाकिस्तान की कृषि व्यवस्था और जल संसाधन बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं। जानिए सिंधु जल संधि का पूरा इतिहास, क्यों बनी थी यह संधि, इसका कामकाज कैसे होता है और अब इसके निलंबन का दोनों देशों पर क्या असर पड़ सकता है। पढ़िए पूरी खबर हमारे खास विश्लेषण के साथ।

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सिंधु जल संधि को लेकर भारत का बड़ा फैसला

हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ एक सख्त कदम उठाया है। भारत सरकार ने बुधवार, 23 अप्रैल को सिंधु जल संधि को औपचारिक रूप से निलंबित कर दिया है। यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी (CCS) की अहम बैठक में लिया गया। इस बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल भी मौजूद थे। यह पहला मौका है जब भारत ने इस संधि को इस तरह से सस्पेंड किया है।

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भारत की तरफ से इस निलंबन के बाद पाकिस्तान को अब जल संबंधित कोई भी जानकारी साझा नहीं की जाएगी और साथ ही सिंधु जल संधि से जुड़ी किसी भी बैठक में भारत भाग नहीं लेगा। अभी तक पाकिस्तान सरकार ने इस पर कोई आधिकारिक विरोध दर्ज नहीं कराया है। हालांकि, पाकिस्तान के पूर्व सूचना मंत्री और पीटीआई नेता चौधरी फवाद हुसैन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट कर कहा कि भारत ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होगा।

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सिंधु जल संधि क्या है?

19 सितंबर, 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच यह संधि साइन हुई थी। इसे 'इंडस वाटर ट्रीटी' कहा जाता है और यह जल बंटवारे की सबसे अहम संधियों में मानी जाती है। इस संधि की रूपरेखा विश्व बैंक की मध्यस्थता में बनी थी और उस समय भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। 9 साल की बातचीत और समझाइश के बाद दोनों देशों के बीच यह ऐतिहासिक समझौता हुआ।

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संधि की जरूरत क्यों पड़ी?

1947 में भारत के बंटवारे के समय पंजाब भी दो हिस्सों में बंटा—पूर्वी पंजाब भारत में और पश्चिमी पंजाब पाकिस्तान में चला गया। सिंधु नदी घाटी पर पहले से बनी नहरों और पानी के स्रोतों का नियंत्रण भारत के पास आ गया था, जिससे पाकिस्तान को अपनी खेती के लिए भारत पर निर्भर रहना पड़ा। भारत ने शुरुआत में 31 मार्च 1948 तक पानी देना जारी रखा लेकिन 1 अप्रैल 1948 को दो नहरों का जल प्रवाह रोक दिया। इससे पाकिस्तान की कृषि बुरी तरह प्रभावित हुई।

इसके बाद दोनों देशों में कई दौर की बातचीत हुई। इसी दौरान अमेरिका के टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व अध्यक्ष डेविड लिलियंथल भारत और पाकिस्तान आए और लौटकर एक लेख लिखा, जिसे पढ़कर विश्व बैंक प्रमुख डेविड ब्लैक ने पहल की और दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों से संपर्क किया। फिर 1960 में सिंधु जल संधि पर मुहर लगी।

संधि का कामकाज कैसे होता है?

इस संधि के तहत भारत को पूर्वी नदियों—रावी, ब्यास और सतलुज का अधिकार मिला, जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों—सिंधु, झेलम और चिनाब का। इस बंटवारे के हिसाब से पाकिस्तान को 80 फीसदी पानी मिलता है जो उसकी खेती के लिए बेहद अहम है। भारत इन नदियों पर सीमित मात्रा में जल उपयोग कर सकता है, जैसे सिंचाई, हाइड्रोपावर या घरेलू जरूरतों के लिए।

संधि के तहत दोनों देशों ने एक सिंधु आयोग भी बनाया, जिसमें भारत और पाकिस्तान के कमिश्नर शामिल होते हैं। ये अधिकारी आपसी बैठकें करते हैं, साइट का निरीक्षण करते हैं और यदि किसी परियोजना को लेकर विवाद हो तो समाधान खोजते हैं। कोई समाधान न निकलने पर कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन या तटस्थ विशेषज्ञ की मदद भी ली जा सकती है।

पाकिस्तान पर इस फैसले का क्या असर होगा?

पाकिस्तान की लगभग 80 फीसदी खेती योग्य जमीन सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है। यह करीब 16 मिलियन हेक्टेयर में फैली है और वहां की कृषि में सिंचाई के लिए 93 फीसदी पानी इसी से लिया जाता है। सिर्फ खेती ही नहीं, पाकिस्तान की पूरी अर्थव्यवस्था—कपड़ा उद्योग, चीनी उत्पादन, औद्योगिक इकाइयां—सभी का जीवन इसी जल पर निर्भर है। अगर भारत इस समझौते को पूरी तरह सस्पेंड करता है या फिर पानी रोकता है, तो पाकिस्तान की जल, कृषि और आर्थिक संरचना पर बड़ा असर पड़ सकता है।

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