कर रहे हैं कुमाउनी भाषा को गहराई से समझने का अनूठा प्रयासअल्मोड़ा: कुमाउनी भाषा की विशिष्टताओं को सीखने,समझने, और संवर्धित करने के उद्देश्य से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के 30 शोधार्थियों का दल अल्मोड़ा के पेटशाल, बजौली और आसपास के गांवों का दौरा कर रहा है। इस शोध यात्रा का नेतृत्व जेएनयू के भाषा संस्थान के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रदीप कुमार दास और कुमाउनी भाषा की शिक्षिका ओजस्वी मनकोटी और कार्यक्रम समन्वयक कल्याण मनकोटी कर रहे हैं।कुमाउनी भाषा को वैश्विक मंच पर ले जाने का सपनायह शोध यात्रा ओजस्वी मनकोटी, जो जेएनयू में कोरियन भाषा की छात्रा और अल्मोड़ा की बेटी हैं, के प्रयासों का नतीजा है। ओजस्वी का मानना है कि कुमाउनी भाषा की मिठास और गहराई को वैश्विक स्तर पर पहचाना जाना चाहिए। उनके इस पहल ने न केवल शोधार्थियों को, बल्कि स्थानीय ग्रामीणों को भी उत्साह से भर दिया है।समृद्ध विरासत के संरक्षण की दिशा में ऐतिहासिक कदमकार्यक्रम के समन्वयक और राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षाविद् कल्याण मनकोटी ने इस पहल को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह शोध यात्रा कुमाउनी भाषा के व्याकरण, ध्वनिशास्त्र और सांस्कृतिक पहलुओं पर गहन अध्ययन का मार्ग प्रशस्त करेगी। यह कदम भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने के साथ-साथ उन्हें नई पहचान देने का प्रयास है।सांस्कृतिक संवाद और लोक परंपरा का उत्सवइस कार्यक्रम की एक बड़ी विशेषता ग्रामीणों द्वारा पारंपरिक तरीके से दल का स्वागत था। अम्मा-बूबू और अन्य ग्रामीणों ने लोकगीतों और नृत्यों से सांस्कृतिक रंग बिखेरे। शोधार्थियों ने भी अपनी संस्कृति के गीत प्रस्तुत किए, जिससे यह आयोजन एक सांस्कृतिक संवाद का अद्भुत उदाहरण बन गया। गांव की बाखली में हुआ यह आयोजन एक सांस्कृतिक उत्सव का रूप ले चुका था।भाषा, संस्कृति और मानवता का संगमप्रोफेसर प्रदीप कुमार दास ने कुमाउनी भाषा की मिठास और आत्मीयता की प्रशंसा करते हुए इसे भारत की भाषाई विविधता का अनमोल हिस्सा बताया। उन्होंने कहा कि यह पहल शोधार्थियों और ग्रामीणों के बीच जुड़ाव को मजबूत करने के साथ-साथ कुमाउनी संस्कृति को गहराई से समझने का अवसर प्रदान कर रही है।भविष्य की ओर एक नई शुरुआतयह कार्यक्रम कुमाउनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने की दिशा में न केवल एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि कुमाउं की समृद्ध परंपराओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करने का मार्ग भी प्रशस्त करता है। यह भाषा, लोक परंपरा और सौंदर्य के शोध की दिशा में एक नई शुरुआत का प्रतीक है।