अभी अभी
उत्तराखंड | नैनीतालहरिद्धारसोमेश्वररूद्रप्रयागरामनगरभतरोजखानबेरीनागबेतालघाटबागेश्वरपौड़ी गढ़वालपिथौरागढ़हरिद्वारहल्द्धानीदेहरादूनअल्मोड़ाताड़ीखेतचम्पावतऊधम सिंह नगरउत्तरकाशी
जॉब अलर्ट
देश | हिमांचल प्रदेश
दुनिया
Advertisement

पहल:: दारमा घाटी की नकदी फसलों को पोषण और आजीविका से जोड़ेगा, जीबी पंत पर्यावरण संस्थान

02:00 PM Oct 01, 2024 IST | editor1
Advertisement
Advertisement

Initiative:: link cash crops of Darma valley with nutrition and livelihood, GB Pant Environment Institute

Advertisement

सीमांत गांवों में खाद्य पोषण और आजीविका वर्धन हेतु पर्यावरण संस्थान की अभिनव पहल शुरू राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन परियोजना से संवर्धन करेंगे दारमा घाटी की स्थानीय नगदी पैदावार का

Advertisement

अल्मोड़ा: वाईब्रेंट विलेज प्रोग्राम पर केंद्रित एनएमएचएस परियोजना अनुसंधान के तहत वैज्ञानिक डा शैलाजा पुनेठा के नेतृत्व में टीम दारमा वैली पहुंच गई है। गाेविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान के निदेशक डा सुनील नौटियाल के मार्गनिर्देशन में गई इस टीम द्वारा क्षेत्र में अनुसंधान पूर्व सघन अनुसंधान किया जा रहा है।

Advertisement


एनएमएचएस नोडल अधिकारी इं. एमएस लोधी ने बताया कि यह अनुसंधान इस घाटी में उपेक्षित नगदी फसलों को न केवल लोगों की आजीविका से जोड़ेगा वरन् अन्य हितधारकों के साथ मिलकर इस क्षेत्र में अन्य खाद्य उत्पादों को भी पटल पर लाने का प्रयास करेगा।


उन्होंने कहा कि घाटी में उत्पादन बढ़ाने, पलायन को रोकने, क्षेत्र के समग्र विकास और उत्पादों को मूल्यवर्धित करने की दिशा में शोधार्थी इस परियोजना में सघन अनुसंधान करेंगे। पिथौरागढ़ कृषि विभाग, विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय जैसे संस्थान इस अनुसंधान के विभिन्न आयामों में सहयोग कर रहे हैं।


परियोजना प्रमुख डाॅ शैलजा पुनेठा के अनुसार इस क्षेत्र में चैलाई, कुटटू या ओगल, काला जीरा, जम्बू, राजमा, जटामासी, कुटकी व लाही आदि का उत्पाद प्रचुर होता है और यहां की जलवायु इसके लिए सर्वथा उपयुक्त है। लेकिन इस क्षेत्र में ये मूल्यवान खाद्य प्रजातियां उपेक्षित हैं।

क्षेत्र के नागलिंग, बालिंग, घुग्तू, दांतू, बौन, फिलाम आदि गांवों में स्थानीय महिलाओं के समूह बनाकर क्षेत्र में इन मूल्यवान और अलाभकारी प्रजातियों का कृषिकरण और संकलन कर उन्हें इसकी आजीविका से जोड़ने को लक्ष्य को लेकर यह अनुसंधान कार्य किया जा रहा है।


उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन के दौर में खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इन प्रजातियों के संरक्षण हेतु जीन बैंक संरक्षण की दिशा में भी कार्य किया जाएगा। स्थानीय लोगों को इन जैविक उत्पादों की उच्च कीमत मिल सके और उनकी जैव विविधता संरक्षित रहे।

इस बावत उन्होंने लोहाघाट में आईटीबीपी के सीसीओ डीएस रावत से मुलाकात की और उन्हें सीमांत गांवों में प्रस्तावित कार्यों की जानकारी दी। उनके द्वारा आईटीबीपी की ओर से इस कार्य में पूरा सहयोग करने का आश्वासन भी दिया गया। टीम प्रस्तावित गांवों में प्राथमिक सर्वेक्षण के कार्य हेतु पहुंच गई है।

Advertisement
Advertisement
Next Article