नैनीताल हाईकोर्ट ने रद्द किया शिक्षको और कर्मचारियों के स्थानांतरण का फैसला
नैनीताल हाईकोर्ट ने कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल और एसएसजे विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के शिक्षकों और कर्मचारियों के स्थानांतरण के फ़ैसले को रद्द कर दिया है। फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि कुमाऊं विश्वविद्यालय के विभाजन के बाद शिक्षक-कर्मचारियों की इच्छा को ध्यान में रखते हुए नई नीति बनायी जानी चाहिए।
माननीय न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की अध्यक्षता वाली उत्तराखंड उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने पूर्ववर्ती कुमाऊं विश्वविद्यालय के डीएसबी और एसएसजे परिसरों के तत्कालीन शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक कर्मचारियों को नवगठित एसएसजे विश्वविद्यालय अल्मोड़ा और कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल में में स्थानांतरित किए जाने के निर्णय को रद्द कर दिया है।
डॉ नंदन सिंह और अन्य की अपील पर कोर्ट ने फैसला सुनाया। याचिकाकर्ता के वकील सुहाष जोशी ने इस निर्णय को शिक्षकों और कर्मचारियो की बड़ी जीत बताया।
दोनों परिसरों के संबंधित कर्मचारियों को 22 जून 2020 को उनकी पोस्टिंग के आधार पर नव विभाजित विश्वविद्यालयों का हिस्सा माना गया था। कर्मचारियों और शिक्षकों में इस बात के प्रति नाराजगी थी कि बिना संबंधित कर्मचारियों को यह चुनने का उचित विकल्प दिए कि वे विश्वविद्यालय के विभाजन के बाद किस विश्वविद्यालय में शामिल होना चाहते हैं,यह आदेश जारी कर दिया गया।
इस आदेश को संबंधित सरकारी और विश्वविद्यालय के आदेशों को याचिकाकर्ताओं ने चुनौती दी थी। मुख्य याचिका डॉ. नंदन सिंह एवं अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य एवं अन्य, डब्ल्यूपीएसबी संख्या 522/2021 है, जिसे अधिवक्ता सुहास आर जोशी के माध्यम से दायर किया गया।
याचिकाकर्ताओं ने जी.बी.पंत विश्वविद्यालय आदि के मामले में समानता, वैध अपेक्षाओं और समता के सिद्धांतों का हवाला देते हुए अपने जबरन स्थानांतरण और अवशोषण को चुनौती दी थी, जिससे उन्हें NAAC मान्यता और धारा 12-बी यूजीसी स्थिति के लाभों से वंचित किया गया, जिसने उन्हें 50 वर्ष पुराने कुमाऊं विश्वविद्यालय के कर्मचारियों के रूप में विभिन्न शोध परियोजनाओं के लिए आवेदन करने में सहायता की।
मौखिक आदेश के अनुसार अधिकारियों को दोनों पूर्ववर्ती परिसरों के कर्मचारियों से नई आपत्तियां/विकल्प आमंत्रित करने और फिर कर्मचारियों द्वारा दिए गए विकल्पों और प्रशासनिक सह शैक्षणिक आवश्यकताओं के बीच संतुलन रखते हुए एक नीति तैयार करने का निर्देश दिया गया है। वर्तमान समाचार के प्रकाशन के समय न्यायालय का हस्ताक्षरित आदेश उपलब्ध नहीं था।