एनसीईआरटी ने दी सफाई, कहा – किताबों के नाम भारतीयता से जुड़े, विरोध बेबुनियाद
नई शिक्षा नीति के तहत स्कूली छात्रों के लिए तैयार की गई किताबों के हिंदी नामों को लेकर उठे विवाद पर एनसीईआरटी ने स्पष्ट किया है कि इन नामों में किसी तरह की कोई समस्या नहीं है। परिषद के मुताबिक, किताबों के नाम भारतीय संस्कृति, रागों और वाद्य यंत्रों से प्रेरित हैं और इनका मकसद नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ना है।
एनसीईआरटी के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि ‘संतूर’, ‘तबला’, ‘मृदंग’, ‘वीणा’ और ‘पूर्वी’ जैसे नाम भारतीयता की पहचान हैं। उन्होंने कहा कि ये किताबें बीते दो वर्षों से देशभर के स्कूलों में पढ़ाई जा रही हैं और अब तक इन पर किसी तरह की आपत्ति सामने नहीं आई थी। अधिकारी ने यह भी बताया कि किताबों को लेकर छात्रों और शिक्षकों से मिले फीडबैक में काफी सकारात्मक प्रतिक्रियाएं आई हैं।
परिषद ने बताया कि इस बार एनसीईआरटी की पुस्तकों को पहली बार फाइव स्टार रेटिंग प्राप्त हुई है, जो अब तक अधिकतम दो स्टार रेटिंग पर थी। यह इस बात का संकेत है कि नई पुस्तकों की गुणवत्ता को व्यापक सराहना मिल रही है।
इस बीच अंग्रेजी की जिस किताब 'पूर्वी' के नाम को लेकर सबसे ज्यादा विवाद खड़ा हुआ, उसकी विषयवस्तु पर भी परिषद ने कहा कि अब केंद्र भारत है, न कि पश्चिम। पहले जहां विदेशी कथाएं पढ़ाई जाती थीं, अब उन स्थानों पर रानी अब्बक्का जैसी भारतीय वीरांगनाओं की गाथाएं शामिल की गई हैं। कर्नाटक की रानी अब्बक्का भारत की पहली महिला थीं जिन्होंने औपनिवेशिक आक्रमणकारियों के खिलाफ हथियार उठाया था।
एनसीईआरटी ने दो टूक कहा है कि विरोध करने वालों की आपत्ति आधारहीन है और यह केवल राजनीति से प्रेरित प्रतीत होती है। जिनके लिए यह किताबें बनाई गई हैं—छात्र और शिक्षक—वे इनसे संतुष्ट हैं और यही सबसे अहम बात है।