For the best experience, open
https://m.uttranews.com
on your mobile browser.
Advertisement
राजकीय प्राथमिक विद्यालय सिराड़ में लोक कला पर एक दिवसीय नवाचार कार्यशाला में खूब बहे लोक कला के रंग

राजकीय प्राथमिक विद्यालय सिराड़ में लोक कला पर एक दिवसीय नवाचार कार्यशाला में खूब बहे लोक कला के रंग

09:47 PM Jun 10, 2025 IST | editor1
Advertisement

रंगों और सुरों में रची-बसी लोक विरासत से बच्चों का आत्मीय साक्षात्कार

अल्मोड़ा:: राजकीय प्राथमिक विद्यालय सिराड़, अल्मोड़ा, एक ऐसा साक्षी बना जहाँ शिक्षा, संस्कृति और लोक चेतना की त्रिवेणी एक अद्वितीय दृश्य में साकार हुई।
यहाँ की शांत पहाड़ियों की गोद में लोक कला की आत्मा ने रंगों और सुरों के माध्यम से बच्चों की कल्पना को छुआ। सीबीसी (कपैसिटी बिल्डिंग सेंटर), अल्मोड़ा के रचनात्मक कलाकारों और लोक रंगकर्मियों ने विद्यालय परिवार, अभिभावकों और ग्रामवासियों के सहयोग से एक एक दिवसीय नवाचार कार्यशाला का आयोजन किया—एक ऐसा अवसर, जहाँ परंपरा और भविष्य ने हाथ थामे।

Advertisement

इस कार्यशाला का उद्देश्य केवल कला सिखाना नहीं था, बल्कि बच्चों को अपनी जड़ों से, अपनी सांस्कृतिक अस्मिता से जोड़ना, और उनकी सृजनात्मक संवेदना को नई दिशा देना था।

Advertisement

विद्यालय के शिक्षक डॉ. रमेश सिंह दानू ने बताया कि कार्यशाला में चित्रकला, रंग संयोजन और पारंपरिक लोक विधाओं की बुनियादी अवधारणाओं को सरल, संवादात्मक और जीवंत शैली में बच्चों के समक्ष प्रस्तुत किया गया। इन नन्हीं आँखों ने न केवल रंगों से चित्र बनाए, बल्कि लोक गीतों, कथाओं और वाद्ययंत्रों की ध्वनियों के माध्यम से अपनी संस्कृति को महसूस किया।

Advertisement

कार्यक्रम का समन्वयन राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक और समाजसेवी कल्याण सिंह मनकोटी ने किया, जबकि संचालन का दायित्व लोक रंगकर्मी भास्कर भौर्याल ने अपनी अनुभवी टीम के साथ निभाया। इस टीम में सोनी मेहता, सौरव मेहता, मोहनी मनकोटी और ओजस्वी मनकोटी शामिल थे, जिन्होंने बच्चों को पारंपरिक चित्रकला, लोकगीत, नृत्य और संवाद की विभिन्न विधाओं से आत्मीयता से परिचित कराया। यह कार्यशाला केवल एक प्रशिक्षण नहीं थी—यह एक संवेदनशील सांस्कृतिक यात्रा थी।

हुड़क की थाप, बांसुरी की मीठी तान और लोकगीतों की स्वर-लहरियाँ जब विद्यालय परिसर में गूंजीं, तो मानो समूचा वातावरण लोकचेतना और उल्लास से भर गया। बच्चे जब पारंपरिक परिधानों में सजे “ज्यों होला मेरी छब्बी छै…” जैसे गीत गाते हुए रंगों से चित्र उकेर रहे थे, तो वह दृश्य केवल दृश्य नहीं रहा, वह स्मृति बन गया—जीवंत, धड़कता हुआ और आत्मा को छू लेने वाला।

Advertisement

इस सांस्कृतिक उत्सव को एक और ऊँचाई मिली जब दूरदर्शन की टीम ने इस सम्पूर्ण कार्यक्रम को रिकॉर्ड किया। डी.डी. नेशनल के रिषभ गुप्ता, दीपक भाटी और रोहित भारद्वाज द्वारा कुमाऊँ की लोक संस्कृति को राष्ट्रीय मंच पर पहुँचाने का यह प्रयास प्रशंसनीय है। शीघ्र ही यह कार्यक्रम दूरदर्शन पर प्रसारित होगा, जिससे देशभर के दर्शक उत्तराखंड की जीवंत लोक विरासत और शिक्षा में नवाचार की इस मिसाल को देख सकेंगे।

कार्यक्रम समन्वयक कल्याण मनकोटी ने इस आयोजन को नई शिक्षा नीति की भावना के अनुरूप एक प्रेरक सामाजिक संवाद बताया। उनके शब्दों में, “यह कार्यशाला केवल कला का अभ्यास नहीं, बल्कि एक ऐसा जीवंत संवाद है जिसमें शिक्षक, समाज और संस्कृति साथ-साथ चलते हैं। जब समाज शिक्षा में सहभागी बनता है, तभी शिक्षा पूर्ण और सार्थक होती है।”

इस अवसर पर विद्यालय प्रबंधन समिति, अभिभावकगण और ग्रामवासी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। विशेष रूप से नीमा सिराड़ी, भोपाल सिंह सिराड़ी, मोनिता सिराड़ी, बीना देवी, देवकी सिराड़ी और हेमा सिराड़ी जैसे स्थानीयजन अपनी सक्रिय भागीदारी से इस आयोजन की आत्मा बन गए।

यह कार्यशाला एक प्रेरक उदाहरण है कि परंपरागत लोकविधाओं को शिक्षा में समावेशित कर बच्चों को उनकी सांस्कृतिक जड़ों से कैसे जोड़ा जा सकता है। यह प्रयास न केवल बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में सहायक सिद्ध हुआ, बल्कि एक समावेशी, रचनात्मक और समुदाय-आधारित शिक्षा की दिशा में भी एक उल्लेखनीय पहल बन गया।

विद्यालय प्रबंधन समिति की अध्यक्ष किरन सिराड़ी ने विद्यालय की प्रधानाध्यापिका ममता पाठक और सहायक अध्यापक डॉ. रमेश सिंह दानू के प्रति विशेष आभार व्यक्त किया जिन्होंने समर्पण और रचनात्मकता के साथ विद्यालय को नई ऊँचाइयों की ओर अग्रसर किया।

Advertisement