राज्य स्थापना की वर्षगांठ: क्या उत्तराखंड के सपने साकार हुए? विषय पर हुई संगोष्ठी
State Foundation Anniversary: Have Uttarakhand's dreams come true? symposium on the topic
24 साल में भी हालात नहीं सुधरना चिंताजनक राज्य आंदोलन के सपने नहीं हुए साकार
अल्मोड़ा: अलग राज्य बनने के 24 साल बाद भी राज्य आंदोलन की भावना साकार नहीं हुई। गलत नीतियों के चलते राज्य की स्थिति पहले से बदतर हो गई है।
हुक्मरानों की अनदेखी और अधिकारियों की मनमानी से राजधानी का मुद्दा अब तक हल नहीं हो सका। लचर शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, बेरोजगारी, जंगली जानवर आदि समस्याओं के चलते पलायन बढ़ता जा रहा है। शहीदों और आंदोलनकारियों के सपनों का उत्तराखंड बनाने के लिए सामूहिक आंदोलन चलाकर नीति निर्धारण में परिवर्तन की जरुरत है।
राज्य स्थापना दिवस से पूर्व हुई क्या उत्तराखंड के सपने साकार हुए? विषय पर हुई संगोष्ठी में वक्ताओं ने उक्त विचार रखे।
राज्य आंदोलनकारी वरिष्ठ पत्रकार और उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी ने कहा उत्तराखंड के साथ तीन अन्य राज्यों का गठन हुआ था। उत्तराखंड की स्थाई राजधानी का मुद्दा आज तक हल नहीं हुआ है।
कमजोर भू कानून के चलते मूल निवासी भूमि हीन हो रहे हैं। नौकर शाह निरंकुश और राजनीति नपुंसक हो गई है। राज्य आंदोलन की मूल भावना से कोई सरोकार नहीं रह गया है।
अन्य वक्ताओं ने शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, उद्यान, सार्वजनिक परिवहन, जंगली जानवर, आवारा गौवंश, रोजगार आदि व्यवस्थाओं पर असंतोष जताया। कहा अलग राज्य बनने के बाद नेताओं को कुर्सी मिल गई लेकिन राज्य के हालात नहीं बदले।
अधिकांश मामलों में उत्तर प्रदेश राज्य से भी बदतर स्थिति हो गई है। वक्ताओं ने राज्य आंदोलन की भावना को साकार करने के लिए फिर से नया आंदोलन चलाने का आह्वान किया।
संगोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार नवीन बिष्ट, डॉ निर्मल जोशी, निवर्तमान पालिकाध्यक्ष प्रकाश जोशी, राजेंद्र बोरा, नारायण सिंह थापा, रमेश जोशी, कर्मचारी शिक्षक नेता धीरेंद्र कुमार पाठक, ईश्वरी दत्त जोशी, नीरज पंत, धीर भवन भट्ट आदि ने विचार रखे।
संचालन वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र रावत ने किया। इस मौके पर जगदीश जोशी, वसीम,एडवोकेट गोविंद लाल वर्मा, पान बोहरा,जीवन चन्द्र, ललित तिवारी आदि मौजूद थे।