अभी अभी
उत्तराखंड | नैनीतालहरिद्धारसोमेश्वररूद्रप्रयागरामनगरभतरोजखानबेरीनागबेतालघाटबागेश्वरपौड़ी गढ़वालपिथौरागढ़हरिद्वारहल्द्धानीदेहरादूनअल्मोड़ाताड़ीखेतचम्पावतऊधम सिंह नगरउत्तरकाशी
जॉब अलर्ट
देश | हिमांचल प्रदेश
दुनिया
Advertisement

चोरों ने ताले तोड़े, पुलिस ने उम्मीदें! 19 दिन बाद दर्ज हुई एफआईआर, काठगोदाम पुलिस की सुस्ती पर उठे सवाल

11:32 AM Mar 26, 2025 IST | उत्तरा न्यूज टीम
featuredImage featuredImage
Oplus_131072
Advertisement
Advertisement

काठगोदाम की रावत कॉलोनी में एक बैंक के रिलेशनशिप मैनेजर अजीम खान के घर हुई लाखों की चोरी के बाद पुलिस की कार्यशैली सवालों के घेरे में आ गई है। चोरी की घटना के 19 दिन बाद पुलिस ने एफआईआर दर्ज की, जबकि पीड़ित ने आठ मार्च को ही पुलिस को सूचना दे दी थी। पुलिस ने पहले तो घटना को संदिग्ध माना, फिर चोरी गए गहनों की संख्या को लेकर अपनी गणना करने लगी। इस दौरान मामला टलता रहा और अंततः 19 दिन बाद मुकदमा दर्ज किया गया।

Advertisement

अजीम खान छह मार्च को अपने परिवार के साथ बरेली गए थे। जब आठ मार्च की सुबह वे घर लौटे, तो उन्होंने देखा कि दरवाजे का ताला टूटा हुआ था। अंदर जाकर देखा तो नकदी और गहने गायब थे। घर का हाल देखकर पूरा परिवार स्तब्ध रह गया। उन्होंने तुरंत पुलिस को सूचना दी और तहरीर भी सौंपी, लेकिन पुलिस ने पहले मामले को गंभीरता से नहीं लिया। किसी ने चोरी को संदिग्ध करार दिया, तो किसी ने चोरी गए सामान का मूल्यांकन अपने हिसाब से करना शुरू कर दिया।

Advertisement

यह पहला मामला नहीं है जब काठगोदाम पुलिस ने चोरी की एफआईआर दर्ज करने में इतनी देर की हो। जीतपुर नेगी में भी 31 जनवरी को चंदन सिंह गुसाईं के घर चोरी हुई थी। जब वे प्रयागराज महाकुंभ से लौटे, तो उन्होंने घर का ताला टूटा पाया और लाखों के जेवरात गायब थे। इस मामले में भी पुलिस ने 47 दिन तक टालमटोल किया और फिर मुकदमा दर्ज कर अगले ही दिन चोर को पकड़ने का दावा कर दिया। लेकिन बरामदगी के नाम पर केवल एक अंगूठी और एक मांग टीका ही मिला। नकदी को लेकर चोर ने बताया कि उसे 97 हजार रुपये मिले थे, जो उसने जुए में गवां दिए।

Advertisement

इन घटनाओं से यह साफ है कि चोरी की एफआईआर दर्ज करने में पुलिस की लापरवाही और बरामदगी के नाम पर लीपापोती आम हो गई है। यदि पुलिस सक्रियता दिखाए और तुरंत कार्रवाई करे, तो शायद चोरी गए सामान को सही समय पर बरामद किया जा सकता है। लेकिन जब एफआईआर दर्ज करने में ही इतनी देरी हो, तो अपराधियों को खुली छूट मिलना स्वाभाविक है। पीड़ितों के लिए यह स्थिति और भी तकलीफदेह है, जब वे अपनी जमा-पूंजी खोने के बावजूद न्याय की आस में पुलिस के चक्कर लगाते रहते हैं।

Advertisement
Advertisement