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कल यानि 1 जून की शाम को लोकसभा चुनाव 2024 के Exit Poll आ चुके है। सात चरणों में हुए चुनाव में कल 1 जून को अंतिम चरण के चुनाव के बाद ये एक्जिट पोल जारी हो गए। अब 4 जून की सुबह 7 बजे मतगणना शुरू होगी और इसके बाद पता चल सकेगा कि किसकी सरकार बन रही है।
अगर हम भारत में Exit Poll की बात करें तो पता चलता है कि साल 1957 में पहली बार आम चुनाव के दौरान इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन के प्रमुख रहे मुखिया एरिक डी कॉस्टा ने सर्वे करवाया था लेकिन इसे एक्जिट पोल नही कहा गया। इसके बाद 1980 और 1984 में डॉक्टर प्रणय रॉय की अगुवाई में एक सर्वे किया गया।
औपचारिक तौर पर साल 1996 में भारत में Exit Poll की शुरुआत सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) ने की थी। तब पत्रकार नलिनी सिंह ने दूरदर्शन के लिए एग्जिट पोल कराया था, जिसके लिए सीएसडीएस ने आंकड़े जुटाए थे। इस पोल में बताया गया था कि भाजपा लोकसभा चुनाव जीतेगी और ऐसा ही हुआ। इसी के बाद से देश में एग्जिट पोल का चलन बढ़ गया। साल 1998 में निजी न्यूज चैनल ने पहली बार एग्जिट पोल का प्रसारण किया था।
प्रारंभिक दौर
1984: भारत में Exit Poll पोल का पहली बार उपयोग किया गया। यह पहल भारतीय मीडिया में नई थी और इसके परिणामों का व्यापक स्तर पर विश्लेषण हुआ।
1996: बड़े पैमाने पर Exit Poll हुआ, जिसे प्रमुख टीवी चैनलों और समाचार पत्रों ने कवर किया।
1998: एक्जिट पोल क सटीकता पर प्रश्न उठे, जब चुनाव परिणामों में और एक्जिट पोल के अनुमानों में अंतर देखा गया।
2004: इस दशक में एक्जिट पोल के तरीके में सुधार हुए, लेकिन एक बार फिर, अनुमान वास्तविक परिणामों से भिन्न रहे, जिससे इनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे।
2009: तकनीकी सुधार और बेहतर सैंपलिंग तकनीकों के कारण एक्जिट पोल अधिक सटीक हो गए।
2014: इस दशक में डेटा विश्लेषण और मशीन लर्निंग के इस्तेमाल ने एक्जिट पोल को और अधिक सटीक बनाने में मदद की।
2019: मीडिया और डेटा एनालिटिक्स कंपनियों ने एक्जिट पोल के लिए अधिक विस्तृत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाए, जिससे अनुमानों में सुधार हुआ।
चुनाव आयोग ने एक्जिट पोल पर कुछ प्रतिबंध लगाए हैं ताकि चुनाव प्रक्रिया पर इसका प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। चुनाव के दौरान किसी भी प्रकार के अनुमानों के प्रकाशन पर रोक लगाई जाती है।
भारत में एक्जिट पोल का इतिहास कई उतार-चढ़ावों से भरा रहा है। समय के साथ इसकी सटीकता और विधियों में सुधार हुआ है, लेकिन अब भी इन पर पूरी तरह निर्भर नहीं किया जा सकता। एक्जिट पोल चुनाव विश्लेषण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो मतदाताओं और विश्लेषकों को चुनावी रुझानों को समझने में मदद करते हैं।