आपने कई बार देखा होगा की ट्रकों के पीछे शेरों-शायरियों के साथ दो शब्द लिखे जरूर देखे होंगे। वो हैं- OK TATA. यह वो शब्द हैं जो ट्रक पर नेम प्लेट के नम्बर से भी बड़े अक्षरों में लिखे हुए नजर आते हैं।अधिकतर लोग ऐसे होंगे जो इसका मतलब नहीं जानते होंगे । कुछ कहते हैं ये दो शब्द ट्रक की पहचान को बताते हैं, कई लोग ऐसा कहते है कि इसका कनेक्शन रतन टाटा से है,हालांकि ये बात भी सही है कि इसका कनैक्शन टाटा से है लेकिन इसकी शुरूवात टाटा से शुरू नही हुई। असलियत ये है कि ट्रकों के पीछे "OK" लिखने की परंपरा विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश सेना ने शुरू की थी। उस समय ट्रक केरोसीन पर चलते थे, और टक्कर होने पर उनमें आग लगने का खतरा रहता था। इसलिए, पीछे से आने वाले वाहनों को सचेत करने के लिए "On Kerosene" लिखा जाता था, जो धीरे-धीरे प्रचलित होकर "OK Horn Please" में बदल गया। ओके टाटा उन्हीं ट्रकों पर लिखा होता है जिनका निर्माण टाटा ग्रुप करता है। दूसरी बात, वाहन पर अगर ओके टाटा लिखा है तो इसका मतलब है कि उसकी टेस्टिंग हो चुकी है और वो बेहतर हालात में है। इसका इस्तेमाल इसलिए भी किया जाता है क्योंकि यह बताता है कि गाड़ी की मैन्युफैक्चरिंग और रिपेयरिंग टाटा मोटर्स के मानकों के तहत की गई है। इन वाहनों की वॉरंटी सिर्फ टाटा के पास है, यह लाइन इस बात पर भी मुहर लगाती है।यह सच है कि ट्रकों के पीछे "OK" लिखने की परंपरा काफी पुरानी है। हालांकि, यह कहा जाता है कि यह प्रथा ब्रिटिश सेना के समय से चली आ रही है, जहां "OK" का उपयोग ट्रकों की जांच या अनुमति के संकेत के रूप में किया जाता था।जहां तक "ओके टाटा" का सवाल है, यह टाटा मोटर्स कंपनी से जुड़ा है। कंपनी ने अपने वाहनों पर "OK TATA" शब्दों का उपयोग अपने वाहनों की पहचान और प्रमाणीकरण के लिए शुरू किया। धीरे-धीरे, यह शब्द ट्रकों के साथ जुड़ गया और पूरे भारत में एक सामान्य ब्रांडिंग का प्रतीक बन गया।आज भी जब कोई "ओके टाटा" सुनता है, तो वह तुरंत ट्रकों के पीछे लिखे इस शब्द को याद करता है, क्योंकि यह भारत की सड़कों पर हर जगह दिखाई देता है।ओके टाटा… कंपनी ने भले ही ये दो शब्द अपनी पॉलिसी के लिए बनाए और ट्रकों पर लिखा, लेकिन धीरे-धीरे यह ब्रांडिंग का हथियार बन गए। ट्रकों के जरिए ये पूरे देश में प्रचलित हुए। आज भी अगर किसी से ओके टाटा कहेंगे तो वो समझ जाएगा कि कहां पर यह शब्द सबसे ज्यादा लिखा हुआ देखा जाता है।ट्रकों को बनाने वाली टाटा मोटर्स आज देश की टॉप ऑटोमोबाइल कंपनी है। इसकी शुरुआत आजादी से पहले 1954 में टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी (TELCO) के रूप में हुई थी। बाद में इसका नाम बदला और इसे टाटा मोटर्स कर दिया गया। उस दौर में यह कंपनी ट्रेन के इंजन बनाने का काम करती थी। तब द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था और टाटा ने भारतीय सेना को टैंक दिया, जिसे टाटानगर टैंक नाम से जाना गया। इस टैंक ने दुश्मनों के छक्के छुड़ाए।कुछ समय बाद टाटा ने ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में कदम रखा। मर्सिडीज बेंज के साथ भागीदारी की और 1954 में कॉमर्शियल वाहन लॉन्च किए. 1991 में कंपनी ने पैसेंजर व्हीकर के क्षेत्र में कदम रखते हुए वाहन और पहली स्वदेशी गाड़ी टाटा सिएरा लॉन्च की. इस तरह एक के बाद एक वाहन लॉन्च करके टाटा ने इतिहास रचा और देश की टॉप ऑटोमोबाइल कंपनी बन गई।इसके बाद कंपनी ने टाटा एस्टेट और टाटा सूमो को भारतीय बाजार में उतारा गया। टाटा सूमों ने भारतीयों के बीच खास जगह बनाई। इसके बाद भारतीय बाजार में आई टाटा इंडिका छा गई। टाटा की इस पहली फैमिली कार को 1998 में लॉन्च किया गया था जिसने बिक्री में भी रिकॉर्ड बनाए थे। टाटा ग्रुप को ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाले रतन टाटा आज हमारे बीच नहीं है, और हाल फिलहाल के दिनों ओके टाटा शब्द के बारे में सर्च किया जाने लगा है।