हुगली के सेरामपुर में एक अनोखी चाय की दुकान है, यह दुकान दुकानदार के बिना ही चल रही है। बंगालियों का चाय के प्रति प्यार किसी से छिपा नहीं है। सुबह हो या शाम, चाय के साथ चर्चा करना उनकी आदत है।राज्य से देश की राजनीति तक, हर मुद्दे पर बहस का अड्डा चाय की टेबल ही होती है। सेरामपुर के "छात्रा काली बाबू श्मशान" के सामने स्थित यह चाय की दुकान करीब 300-350 साल पुरानी है।पहले यह दुकान बाजार की शान हुआ करती थी, लेकिन पिछले 80-90 वर्षों से यह चाय की दुकान बन गई। इस दुकान सबसे खास बात यह है कि इस दुकान में ग्राहक खुद ही चाय बनाते हैं और तय कीमत का पैसा बॉक्स में डाल देते हैं।इस चाय की दुकान का कोई स्थायी दुकानदार नहीं है। इस दुकान को चलाने वाले ग्राहक खुद इसे अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। दुकान के असली मालिक का निधन कई साल पहले हो चुका है। अब दुकान के मालिक का काम केवल सुबह दुकान खोलने तक सीमित है। उसके बाद ग्राहक ही चाय बनाते हैं और खुद सर्व करते हैं।दुकान के नियमित ग्राहक बताते हैं कि वह यहां सिर्फ चाय पीने नहीं, बल्कि बातचीत और समय बिताने आते हैं। शाम को जब चाय बनाने वाला कोई नहीं होता, तो वे खुद चाय बना लेते हैं। रिटायर्ड लोग यहां आकर अपने दोस्तों के साथ बाते करते हैं और कभी-कभी खुद चाय बनाते हैं। यही वजह है कि यह दुकान आज तक बंद नहीं हुई।