चमोली: डूमक गांव तक सड़क की मांग को लेकर भूख हड़ताल शुरु, आजादी के 75 साल बाद भी नहीं बन पाई सड़क
Chamoli: Hunger strike started demanding road till Dumak village, road could not be built even after 75 years of independence.
चमोली: गांव तक सड़क का मांग को लेकर 1 अगस्त से क्रमिक अनशन कर रहे डूमक गांव के ग्रामीणो ने कलक्ट्रेट में आकर आमरण अनशन शुरु कर दिया है। मंगलवार को अंकित भन्डारी और अनिरुद्ध सिंह सनवाल भूख हड़ताल में बैठ गए।
इस दूरस्थ गांव के लोग 1 अगस्त से कुंजौ-मैकोट से डूमक लिए सड़क निर्माण की मांग करते हुए क्रमिक अनशन कर रहे थे।
उससे पहले भी आंदोलन किया जा रहा था परन्तु इसी वर्ष लोकसभा चुनाव से पहले सरकार के आश्वाशन पर आंदोलन स्थगित किया था, पर चुनाव निबटते वादा हवाहवाई हो गया।
इस बीच जिला अधिकारी के माध्यम से प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन भेजते हुए ग्रामीणों ने अपनी व्यथा और संघर्ष की कथा से अगत कराया और अब मांग पूरी होने के बाद ही आंदोलन से हटने का ऐलान किया। ग्रामीणो ने सड़क निर्माण शुरू करने और 2010 के एलॉयमेंट के तहत ही इसे बनाने की मांग की।
इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि जहां एक ओर पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है वहीं दूसरी तरफ 8000 फीट की ऊचाई पर स्थित सीमांत गॉव डूमक विकास की किरण देखने को सड़क की बाट जोह रहा है। मध्यहिमालयी क्षेत्र के इस दूरस्थ गाँव जो केदार श्रृंखला के रूद्रनाथ और केदारनाथ के मध्य स्थित है, वहां पहुँचने के लिए 18 किमी पैदल जाना पड़ता है। जहां राशन, सब्जी, एवं जरूरी सामान ढुलाई पर प्रति खच्चर 1000 रूपया खर्च करना पड़ता है।
कहा कि 21वीं सदी में भी यह गॉव 16वीं सदी का जीवन जीने के लिए अभिशप्त है। गावं के लोग आजादी के 75 साल बाद भी बीमार, दुर्घटना प्रभावितों और प्रसव पीड़ा से जूझ रही महिलाओं को डंडी-कंडी व कंधों पर ढोकर अस्पताल पहुँचाने के लिए मजबूर है।
80 के दशक से शुरू हो गई थी मांग
80 और 90 के दशक से गोपेश्वर से विष्णुप्रयाग तक सड़क बनाने की मांग समूचे क्षेत्र की जनता ने उठायी थी और मजबूर होकर पूरे क्षेत्र में 1991-1992 के लोकसभा चुनाव का पूर्ण बहिष्कार किया। तब भी हमारे हुक्मरान नहीं जागे और छोटे-छोटे संपर्क मार्गो से कुछ गांवों को जोड़कर आंदोलन को तोड़ने की साजिशे निरंतर चलती रहीं। जनआंदोलनों के दबाव में 1996 में गोपेश्वर से कुंजौ-मैकोट सड़क स्वीकृत की गयी। विकास की गति इतनी धीमी थी कि प्रतिवर्ष 1 किमी से कम की गति से यह सड़क दस साल में पूरी की गयी।
वर्ष 2007-08 में दोबारा स्वीकृत हुई पर धरातल तक नहीं पहुंची
जनता के दबाव के चलते वर्ष 2007-2008 में कुंजौ-मैकोट से डूमक तक 32.43 किमी सड़क स्वीकृत की गयी, इसके लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भी 2010 में अपनी स्वीकृति दे दी थी। सभी औपचारिकतायें जिसमें भूगर्भीय जांच, सड़क का अलॉयंमेंट व लागत आदि कार्य तैयार किया गया। पर सिर्फ 9 किमी सड़क बनाने के लिए पी.एम.जी.एस. वाई ने 11 करोड़ से अधिक खर्च किया और 2013 में ठेकेदार ने काम छोड़ दिया। 2015 में फिर रेट रिवाइज कर दूसरी कंपनी को ठेका दिया उसने भी केवल 8 किमी सड़क बनायी जबकि सरकार के कागजों में यह 14.82 किमी दिखाई गयी है। 2019 में भ्रष्टाचार के खेल के लिए फिर सड़क का अलाइमेंट बदल दिया और डूमक गाँव को छोड़कर सीधे स्यूण से कलगोठ सड़क मिलाने की कोशिश की गयी। इतना सब होने बाद क्षेत्रीय जनता लगातार आंदोलित रही पर , तब मजबूर होकर स्थानीय जनता माननीय उच्च न्यायालय की शरण में गई।
हाईकोर्ट के निर्देशों पर भी नहीं हुआ अमल
मई 2022 में हाईकोर्ट ने निर्देश दिए कि जॉच समिति दोनों गॉव डूमक और कलकोट की शिकायतें सुनकर एक माह में समाधान निकाले और वर्ष 2019 के बनाए अलॉयमेंट पर चार महीने में सड़क निर्माण पूर्ण कर न्यायालय को अवगत करवाएं।
लेकिन न्यायालय के निर्देशों की नहीं सुनी। इसलिए जनता को जनवरी 2024 में पुनः आंदोलन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। क्षेत्रीय जनता गोपेश्वर मुख्यालय में आंदोलित रही और बाद में आंदोलन देहरादून की ओर कूच करने की तैयारी में था। लेकिन तब लोकसभा चुनावों को देखते हुए मुख्यमंत्री उत्तराखंड सरकार ने मामले का संज्ञान लिया और सचिव ग्राम विकास विभाग उत्तराखंड को आदेश दिया गया कि 2010 के समरेखण पर शीघ्र सड़क निर्माण सुनिश्चित करें। लेकिन चुनाव के सम्पन्न होने के साथ ही यह प्रक्रिया भी रूक गयी। इसलिए नाराज ग्रामीण अब भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं।