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कविता  लाट साप — दिवास्वप्न daydream  में खोये आज के युवा की तस्वीर

कविता 'लाट साप'— दिवास्वप्न(daydream) में खोये आज के युवा की तस्वीर

Poem 'Lat Saap'
02:36 PM Sep 29, 2020 IST | Newsdesk Uttranews
Poem 'Lat Saap'
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Poem 'Lat Saap' - Picture of today's youth lost in daydream

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"लाट-साप"

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मैं होता,
किसी देश का राजा।
ठाठ बाठ से रहता।।
दिनभर की,
चिलचिली धूप में।
क्यों कर भागा फिरता।।

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होती रानी संग पटरानी,
बाग बगीचे जाता।
जीवन में झंझट नहीं होता,
मजे मजे में जीता।।

होते हजारों नौकर चाकर,
दिल बन मोर मचलता।
कोरी कारी कचकच बाजी,
किसी की भी नहीं सुनता।।

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बंद आंख सपने बुनता हूं,
खुली आंख हूं खोता।
आई है भरपूर जवानी,
खाट हूं लेटा रहता।।

सोते सोते उठ जाता हूं,
उठते उठते सोता।
उलझन दिल की सुलझाता हूं
यूं नाहक नहीं होता।।

बैठा रहता सिंघासन में,
सबको आज्ञा देता।
काश में राजा बन जाता तो,
लाट-साप मैं होता।।

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