हिंदू धर्म में लोग पूजा पाठ में कपूर का इस्तेमाल करते है। बाजार में दो प्रकार के कपूर उपलब्ध हैं। एक प्राकृतिक कपूर और दूसरा कृत्रिम रूप से कारखाने में तैयार किया गया। प्राकृतिक कपूर एक खास पेड़ से बनता है, जिसे कपूर का पेड़ कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Cinnamomum Camphora है। कपूर के पेड़ की ऊंचाई 50-60 फीट तक होती है और इसके गोल पत्ते 4 इंच चौड़े हो सकते हैं। इस पेड़ की छाल से कपूर तैयार किया जाता है। जब पेड़ की छाल सूखने लगती है या ग्रे रंग की दिखने लगती है, तब इसे पेड़ से अलग कर लिया जाता है। इसके बाद इसे गर्म करके परिष्कृत किया जाता है और पाउडर में बदला जाता है। जरूरत के अनुसार इसे आकार दिया जाता है।कपूर वृक्ष की उत्पत्ति पूर्वी एशिया, विशेष रूप से चीन में मानी जाती है। हालांकि, कुछ वनस्पति वैज्ञानिक इसे जापान का मूल निवासी मानते हैं। एक दिलचस्प तथ्य यह है कि आइसक्रीम कभी कपूर के पेड़ से बनाई जाती थी और यह चीन के तांग वंश (618-907 ईस्वी) के समय बेहद लोकप्रिय थी। इसका उपयोग और भी कई तरीकों से किया जाता था। चीनी लोग इसे औषधियों में विभिन्न रूपों में इस्तेमाल करते थे। नौवीं शताब्दी के आसपास आसवन पद्धति से कपूर के पेड़ से कपूर बनाना शुरू हुआ और फिर धीरे-धीरे यह पूरी दुनिया में फैल गया।इसी बीच, भारत भी कपूर उत्पादन पर काम करने की कोशिश कर रहा था। 1932 में प्रकाशित एक शोधपत्र में कोलकाता के स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन के आर.एन. चोपड़ा और बी. मुखर्जी लिखते हैं कि 1882-83 के दौरान लखनऊ के बागवानी उद्यान में कपूर उत्पादक पेड़ों की सफल खेती हुई। हालांकि, यह सफलता लंबे समय तक नहीं टिक सकी, लेकिन प्रयास जारी रहे और कुछ वर्षों के भीतर विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर कपूर वृक्ष की खेती शुरू हो गई।कपूर के पेड़ को काला सोना भी कहा जाता है। इसे दुनिया के सबसे कीमती पेड़ों में गिना जाता है। केवल पूजा में उपयोग होने वाला कपूर ही नहीं, बल्कि इस पेड़ से और भी कई चीजें बनाई जाती हैं। आवश्यक तेलों के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की दवाइयां, परफ्यूम, साबुन आदि भी इस पेड़ से तैयार किए जाते हैं। कपूर के पेड़ में छह प्रकार के रसायन पाए जाते हैं, जिन्हें केमोटाइप कहा जाता है। ये केमोटाइप हैं: कपूर, लिनालूल, -सिनिओल, नेरोलिडॉल, सैफ्रोल और बोर्निओल। इन सभी गुणों के कारण इसे काला सोना कहा जाता है।कपूर में कार्बन और हाइड्रोजन की मात्रा अधिक होती है, जिससे इसका दहन तापमान बहुत कम होता है। यानी, थोड़ी सी गर्मी मिलते ही यह जलने लगता है। कपूर एक अत्यधिक अस्थिर पदार्थ है। जब इसे गर्म किया जाता है, तो यह वाष्प बनकर तेजी से हवा में फैलता है और ऑक्सीजन के साथ मिलते ही आसानी से जलने लगता है।