लोहाघाट से नकुल पंत की रिपोर्ट- 14 जून 2020-काली कुमाऊं के एक उच्च शिक्षित दिव्यांग(Handicapped) बेरोजगार ने स्वरोजगार अपनाकर एक मिसाल कायम की है.इस युवक ने अपने हुनर से बेरोजगारी को तो मात दी ही लेकिन एक सवाल यह भी छोड़ा कि एक दिव्यांग(Handicapped) तक के लिए नौकरी की व्यवस्था हमारा सिस्टम नहीं कर सकता है.एक पुरानी फिल्म का प्रसिद्ध गाना खूब हिट हुआ था "यह बीए है लेकिन चलाए यह ठेला, यह एमए है लेकिन यह बेचे करेला…..अगर चार दिन से यह भूखा है भाई.. जो भूखा है भाई तो मैं क्या करूं..ऐसा ही स्थिति यहां के शिक्षित प्रशिक्षित युवाओं के साथ भी है शारीरिक रूप से कमजोर और दिव्यागों के लिए यह शारीरिक दिक्कत राह का रोड़ा बन जाती है, कुछ ही इस विषम परिस्थिति में नया मार्ग ढूंढ पाते हैं, राम सिहं एक ऐसे ही हुनरमंद युवा हैं.इस प्रशिक्षित बेरोजगार ने अपने क्षेत्र में ही हेयर कटिंग की दुकान खोली है.इसके चलते उसके परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में मदद मिल रही है. अब तक ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को बाल और सेविंग तक के लिए यहां से कई किलोमीटर दूर लोहाघाट नगर तक जाना पड़ता था.भूगोल में परास्नातक और बीएड राम सिंह ने नौकरी की जगह स्वरोजगार को तवज्जो दी है.उनके इस नये काम की क्षेत्र में तारीफ की जा रही है.राम ने बेरोजगारी के संकट से उभरने के लिए कैंची पकड़ने का मन बना लिया. काली कुमाऊं गुमदेश पुलहिंडोला निवासी राम सिंह कुमाऊँ यूनिवर्सिटी से भूगोल में परास्नातक होने के साथ प्रतिष्टित एसआरएम यूनिवर्सिटी से बीएड हैं. राम सिंह कहते हैं ग्रेजुएशन के बाद यदि वह भी चाहते तो बाहरी शहरों में नौकरी कर सकते थे.लेकिन वह अपने पहाड़ को नहीं छोड़ना चाहते हैं.अब सवाल यह उठता है कि एक दिव्यांग (Handicapped)बीएड बेरोजगार को रोजगार के लिए शैलून की दुकान खोल आजीविका चलानी पड़ रही है ऐसे में वहां अन्य बेरोजगारों की स्थिति क्या होगी?