अल्मोड़ा में बंदरों का आतंक अब लोगों के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है। रोजमर्रा की जिंदगी में बंदरों के बढ़ते हमलों से स्कूली बच्चे, राहगीर, और यहां तक कि घरों में रहने वाले लोग भी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। बंदर सिर्फ सड़कों पर ही नहीं बल्कि घरों में भी घुसकर नुकसान कर रहे हैं, जिससे नागरिकों का जीना दूभर हो गया है।सामाजिक कार्यकर्ता संजय पाण्डे ने ने कहा कि उन्होंने कई बार इस समस्या के समाधान के लिए जिलाधिकारी से मुलाकात की है और ज्ञापन भी सौंपा है, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। उन्होंने कहा कि बंदरों की संख्या बेकाबू हो गई है और स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है।पाण्डे ने आरोप लगाते हुए कहा कि वन विभाग ने इस समस्या को हल करने के लिए मेरठ से एक टीम बुलवाई थी, जिसने पिंजरे लगाकर बंदर पकड़ने की कोशिश की, लेकिन यह प्रयास पूरी तरह से असफल रहा। कहा कि स्थानीय लोग आरोप लगा रहे हैं कि यह अभियान सिर्फ दिखावे के लिए था और बंदरों को पकड़ने की कोई गंभीर कोशिश नहीं की गई। संजय पाण्डे के अनुसार, उनके इलाके में तो सिर्फ एक दिन के लिए पिंजरा लगाया गया, वो भी महज दो घंटे के लिए, और फिर उसे हटा दिया गया।संजय पाण्डे ने यह भी कहा कि बंदरों को मैदानी इलाकों से पहाड़ी क्षेत्रों में छोड़ने की घटनाएं सामने आई हैं, लेकिन इनकी रोकथाम के लिए सीमा चौकियों पर कोई सख्त चेकिंग नहीं की जा रही। उन्होंने प्रशासन पर सवाल उठाते हुए कहा कि होली और दीवाली के दौरान तो वन विभाग पूरी तरह से सतर्क रहता है, लेकिन इस गंभीर समस्या पर उनकी उदासीनता चिंताजनक है।उन्होंने मांग की है कि मौजूदा बंदर पकड़ने के अभियान को बंद कर ठोस और कारगर कदम उठाए जाएं, और सीमा चौकियों पर सख्त निगरानी के आदेश दिए जाएं ताकि बाहर से बंदरों को लाकर अल्मोड़ा में छोड़ने की घटनाओं पर रोक लग सके। संजय पाण्डे ने बताया कि उन्होंने इस मामले में मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर भी शिकायत दर्ज करवाई गई है, संजय पाण्डे ने कहा कि कि वे जल्द ही इस मामले में समाधान के लिए नव आगंतुक जिलाधिकारी से मिलेंगे और बंदरों के आतंक से निजात पाने के लिए स्थायी समाधान की मांग करेंगे।