सहारनपुर के एक छोटे से मोहल्ले में हंसते-खेलते परिवार का जीवन कर्ज के बोझ तले बिखर गया। साईं ज्वैलर्स के मालिक सौरभ बब्बर, जो एक समय अपनी खुशहाल जिंदगी और मेहनत से बनाई गई दुकान के लिए जाने जाते थे, ने कर्ज के जाल में फंसने के बाद अपनी पत्नी मोना के साथ गंगा में कूदकर आत्महत्या कर ली।सौरभ, जो पहले एक सामान्य और सुखी जीवन जी रहे थे, ने धीरे-धीरे अपनी मेहनत और लगन से साईं ज्वैलर्स को खड़ा किया था। उनके दो प्यारे बच्चे थे, एक बेटी श्रद्धा और एक बेटा संयम। परिवार के साथ उनकी दुनिया में हर दिन नई उमंग और खुशियां थीं। लेकिन किस्मत ने ऐसा मोड़ लिया कि सबकुछ बदल गया।सौरभ ने अपनी आय को बढ़ाने के लिए कमेटी का काम शुरू किया। शुरुआत में यह काम ठीक चला, लेकिन फिर अचानक से उनके लिए मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो गया। कमेटी के काम में उन्हें भारी नुकसान हुआ, और कर्ज की दलदल में वह धीरे-धीरे फंसते चले गए। इस कर्ज से बाहर निकलने के लिए उन्होंने ब्याज पर पैसे लेने शुरू किए, लेकिन यह कर्ज का जाल इतना गहरा और पेचीदा था कि उनसे निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा।आखिरकार, जब सौरभ को लगा कि अब और कुछ नहीं किया जा सकता, तो उन्होंने और उनकी पत्नी मोना ने एक दिल दहला देने वाला फैसला लिया। रविवार के दिन, सौरभ और मोना अपनी नई बाइक पर सवार होकर हरिद्वार पहुंचे। वहां, उन्होंने हरकी पैड़ी के हाथी पुल से गंगा में छलांग लगा दी। इससे पहले, उन्होंने एक सेल्फी ली और उसे अपने परिचितों को भेजा। सुसाइड नोट में उन्होंने बताया कि कर्ज का बोझ उन्हें इस कदर दबा चुका था कि अब जीने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था।सौरभ का शव गंगा से बरामद कर लिया गया है, लेकिन मोना की तलाश अभी जारी है। सुसाइड नोट में सौरभ ने लिखा कि उनकी संपत्ति और दुकान उनके बच्चों के नाम की जाएगी, और उनके बच्चों को उनकी नानी के पास छोड़ दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि उन्हें किसी और पर भरोसा नहीं था, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को नानी के हवाले कर दिया।यह कहानी एक खुशहाल परिवार के टूटने की है, जहां कर्ज ने उनकी सारी खुशियां और उम्मीदें छीन लीं। सौरभ और मोना के इस कदम ने उनके बच्चों के भविष्य पर एक गहरा और स्थायी असर छोड़ा है। कर्ज का जंजाल सिर्फ सौरभ और मोना की जिंदगी को नहीं, बल्कि उनके बच्चों की मासूमियत को भी निगल गया।उनकी यह दुखद कहानी समाज के लिए एक चेतावनी है कि कर्ज का बोझ कितना भारी और विनाशकारी हो सकता है। यह एक ऐसी त्रासदी है जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है, लेकिन इससे हमें यह सीख लेनी चाहिए कि कर्ज के जाल में फंसने से बचना कितना जरूरी है, और अगर कोई परेशानी में है, तो उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहिए।यह लिखा था सुसाइड नोट मेंमै सौरव बब्बर कर्जा के दलदल मे इस कदर फस गया हूं कि बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा अन्त में मै और मेरी धर्मपली मोना बब्बर अपना जीवन समाप्त कर रहे है, हमारी किशनपुरे वाली प्रोपर्टी दुकान व मकान हमारे दोनो बच्चो के लिए है, हमारे दोनो बच्चे अपनी नानी के घर रहेगे, इनका जीवन अब हम पती-पत्नी उनके हवाले करके जा रहे है। बच्चे हमारे वहीं रहेंगे, हमे किसी और पर भरोसा नहीं है, हमारे लेनदारी को हमने अधाधुंध ब्याजे दी है हम अब और नहीं दे पा रहे, हम जहां सोसाईट करेगें उस जगह जाकर हम Watsapp पर फोटो शेयर कर देगे'इस दुनिया को अलविदा