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कला में स्त्रीत्व  womanhood in arts   विविधताओं भरा सफर

कला में स्त्रीत्व (Womanhood in Arts): विविधताओं भरा सफर

03:29 PM Nov 27, 2024 IST | editor1
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लेखिका: रूमाना नाज


कला में स्त्रीत्व एक महत्वपूर्ण और विविधतापूर्ण विषय है, जो न केवल महिला के भौतिक रूप को दर्शाता है, बल्कि उसके आंतरिक अनुभव, संवेदनाएँ और समाज में उसकी भूमिका को भी प्रकट करता है। भारतीय कला में स्त्री का चित्रण प्राचीन समय से लेकर आधुनिक कला तक कई रूपों में हुआ है। महिला के चित्रण का यह सफर उसके सामाजिक, सांस्कृतिक, और धार्मिक संदर्भों के आधार पर विकसित हुआ है।

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प्राचीन भारतीय कला में स्त्री


प्राचीन भारतीय कला में स्त्री को देवी रूप में चित्रित किया गया है। वे शक्ति, सौंदर्य, और मातृत्व की प्रतीक थीं। उच्‍चकोटि की मूर्तिकला में देवी-देवताओं की मूर्तियाँ, जैसे कि दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, और पार्वती, स्त्रीत्व के आदर्श रूपों को प्रकट करती हैं। इन चित्रों में स्त्री शक्ति और शक्ति का प्रतीक होती है, जो समाज में संतुलन और सद्भाव बनाए रखती है।

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मध्यमकालीन भारतीय कला में स्त्री


मध्यमकालीन भारतीय चित्रकला में भी स्त्री को देवी रूप में पूजा जाता था। ताम्र चित्रकला, राजपूत चित्रकला, और मुग़ल चित्रकला में स्त्री को प्रायः शाही महिला, रानी, या सुंदरतामूलक पात्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इन चित्रों में स्त्री की सुंदरता, सज-धज और शाही जीवन को प्रमुखता दी जाती है।

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आधुनिक कला में स्त्री

आधुनिक कला में, विशेषकर 20वीं सदी के बाद, महिला कलाकारों ने अपनी कला के माध्यम से स्त्रीत्व के नए पहलुओं को उजागर किया। महिला के दर्द, संघर्ष, और उसकी पहचान के सवालों को इन कलाकारों ने अपनी रचनाओं में जगह दी। आधुनिक कला में स्त्रीत्व (femininity) का चित्रण और उसकी अभिव्यक्ति विभिन्न रूपों में देखने को मिलती है। 19वीं और 20वीं सदी में महिलाओं ने कला के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई और स्त्रीत्व को नए दृष्टिकोण से व्यक्त किया। पारंपरिक मान्यताओं और रुढ़ियों को चुनौती देते हुए, आधुनिक कला में महिलाओं ने अपनी स्वतंत्रता, पहचान, और संवेदनाओं को व्यक्त किया।
स्त्रीत्व और नारीवाद (Feminism and Feminine Identity): आधुनिक कला में स्त्रीत्व का चित्रण न केवल महिलाओं की शारीरिक सुंदरता तक सीमित रहा, बल्कि इसमें उनकी मानसिकता, स्वतंत्रता, और समाज में उनके स्थान की भी गहरी खोज की गई। 20वीं सदी के मध्य में नारीवाद (feminism) के प्रभाव से कई महिला कलाकारों ने कला के माध्यम से समाज में महिलाओं की भूमिका और अधिकारों की बात की। इसके परिणामस्वरूप, कला में एक नई दृष्टि विकसित हुई, जहां महिला को एक वस्तु या उपभोग्य वस्तु के रूप में नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र और सशक्त व्यक्तित्व के रूप में चित्रित किया गया।

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अब्स्ट्रैक्ट कला (Abstract Art) और स्त्रीत्व:

अब्स्ट्रैक्ट कला ने भी स्त्रीत्व के प्रतीकों को एक नया रूप दिया। हिलेना वर्डमैन और एला दे कनेक जैसी महिला कलाकारों ने अब्स्ट्रैक्ट कला के माध्यम से महिला अनुभवों, भावनाओं और जटिलताओं को नई अभिव्यक्ति दी। इस शैली में, महिला आकृतियाँ और उनके इर्द-गिर्द का वातावरण अक्सर रूपक के रूप में सामने आते हैं, जो उन दोनों के बीच जटिल संबंधों को व्यक्त करते हैं।


स्त्री का चित्रण और समाज


कला में स्त्री का चित्रण केवल शारीरिक सौंदर्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उसकी मानसिकता, संघर्ष, और समाज में उसके स्थान की गहरी समझ भी प्रदान करता है। भारतीय समाज में महिला को हमेशा आदर्श, माँ, पत्नी या देवी के रूप में ही देखा गया है। लेकिन आधुनिक कला में इस रूढ़िवादी दृष्टिकोण को चुनौती दी गई है। महिला कलाकारों ने अपनी कला के माध्यम से यह दर्शाया कि महिलाओं का जीवन केवल सजीवता और संवेदनाओं का संग्रह नहीं है, बल्कि यह आत्मनिर्भरता, संघर्ष और स्वीकृति का प्रतीक भी है।


आधुनिक महिला चित्रकारों का योगदान


अमृता शेरगिल भारतीय चित्रकला की एक प्रमुख महिला कलाकार थीं, जिन्होंने आधुनिक कला के परिप्रेक्ष्य में स्त्री के रूप को चित्रित किया। उनकी कृतियाँ महिलाओं की संवेदनाओं, उनके संघर्ष और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को बखूबी दर्शाती हैं। उन्होंने महिला के शरीर को एक सांस्कृतिक और मानसिक दृष्टिकोण से देखा और प्रस्तुत किया।
नीलिमा शेख (Neelima Shaihk) और शिवानी अरोड़ा (Shivani Arora) जैसी कलाकारों ने अपनी कला के माध्यम से नारीवाद, स्त्री स्वतंत्रता और महिलाओं के अधिकारों को चित्रित किया। आनंदी गोपाल जोशी (Anandi Gopal Joshi) और श्रीमती पं. जवाहरलाल नेहरू की चित्रकारी में महिलाएं समाज के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी हुई दिखती हैं। इन कलाकारों ने अपनी कला में महिलाओं के जीवन की वास्तविकताओं को सही तरीके से चित्रित किया है।
अजन्ता और एल्लोरा की गुफाएँ भारतीय कला और संस्कृति का एक अमूल्य धरोहर हैं। इन गुफाओं में महिला स्वरूप की चित्रण और मूर्तिकला से जुड़े कई अद्भुत उदाहरण मिलते हैं, जो महिला शक्ति, सुंदरता और उनके सामाजिक-धार्मिक स्थान को दर्शाते हैं।


अजन्ता गुफाएँ:


अजन्ता की गुफाओं में महिला पात्रों का चित्रण अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यहां की दीवारों पर चित्रित महिला पात्र अक्सर देवी, अप्सरा या राजनैतिक और धार्मिक संदर्भों में दिखाए गए हैं। इन चित्रों में महिलाओं को सुसंस्कृत और सौंदर्यपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया गया है। अजन्ता की गुफाओं में पुरुषों की तुलना में महिलाओं को बहुत अधिक ध्यान से चित्रित किया गया है, जो यह दर्शाता है कि उस समय के समाज में महिलाओं को उच्च सम्मान प्राप्त था। कुछ चित्रों में महिलाएं संगीत, नृत्य और अन्य कलाओं में व्यस्त हैं, जिससे उनकी सांस्कृतिक और कलात्मक महत्वता का भी पता चलता है।

एल्लोरा गुफाएँ:


एल्लोरा की गुफाओं में भी महिलाओं की विभिन्न रूपों में उपस्थिति देखी जा सकती है। यहां की प्रमुख गुफाओं में, विशेष रूप से भगवान शिव के काव्यात्मक और धार्मिक चित्रणों में महिलाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। किवदंती अनुसार, एल्लोरा की गुफाओं में महिलाओं का चित्रण शक्ति, प्रेम और सौंदर्य के प्रतीक के रूप में किया गया है। गुफा 16, जो कि काइलाश मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है, उसमें महिला आकृतियाँ और उनके सौंदर्य का अद्वितीय चित्रण देखने को मिलता है।
यहाँ की कला में महिलाएं अक्सर मातृका रूप में दिखायी जाती हैं, जो शक्ति और प्रजनन के प्रतीक के रूप में मानी जाती हैं। महिलाओं की भूमिकाएं विभिन्न धार्मिक कथाओं में विस्तार से दी गई हैं, जो समाज में उनके उच्च स्थान और कर्तव्यों को प्रतिबिंबित करती हैं।
महिलाओं का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
अजन्ता और एल्लोरा की गुफाओं में महिलाओं का चित्रण केवल भौतिक सौंदर्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उनके धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व को भी उजागर करता है। देवी-देवताओं के चित्रण में महिलाओं को देवी शक्ति के रूप में दर्शाया गया है, जो उनके आंतरिक शक्ति और संरक्षण के गुणों का प्रतीक हैं। इसके अलावा, नृत्य और संगीत में महिलाओं की छवि उनके शारीरिक और मानसिक सौंदर्य को भी दर्शाती है।इन गुफाओं का चित्रण और मूर्तिकला समाज में महिलाओं के सम्मान, पूजा और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को संजोने की प्रक्रिया का एक प्रमुख हिस्सा है।


कला के क्षेत्र में महिलाओं का योगदान


कला के क्षेत्र में महिलाओं का योगदान ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण और अविस्मरणीय रहा है। हालांकि समाज में पारंपरिक रूप से पुरुषों को कला और सांस्कृतिक गतिविधियों में प्रमुख स्थान दिया जाता था, लेकिन महिलाओं ने हर युग में अपनी कला से समाज को प्रभावित किया है। उनके योगदान को विभिन्न रूपों में देखा जा सकता है, जैसे चित्रकला, संगीत, नृत्य, मूर्तिकला, लेखन, और अन्य कलाओं में।


चित्रकला (Painting):


भारतीय चित्रकला में महिलाओं ने विशेष रूप से महत्वपूर्ण योगदान दिया है। प्राचीन भारतीय गुफाओं में, जैसे अजन्ता और एल्लोरा की गुफाओं में, महिलाओं का चित्रण विविध रूपों में हुआ है। आधुनिक काल में भी, रवींद्रनाथ ठाकुर (रवींद्रनाथ टैगोर) की प्रेरणा से चित्रकला में महिलाओं की उपस्थिति बढ़ी। भारत की प्रसिद्ध चित्रकार हेलीना जेम्स, अल्पना चक्रवर्ती, नीलिमा शाही, और हुस्ना बी जैसी महिलाओं ने कला की दुनिया में अपनी पहचान बनाई है।


संगीत (Music)


भारतीय संगीत में भी महिलाओं का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक, महिलाएं गायन और वादन के क्षेत्र में शीर्ष पर रही हैं। मीरा बाई, जिन्होंने भक्ति संगीत के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम को व्यक्त किया, भारतीय संगीत की शिखर पर पहुंची। इसके अलावा, कृष्णा देवी, कलीपंती देवी, और राजेश्वरी देवी जैसी कई अन्य महान महिला संगीतज्ञों ने भारतीय संगीत को समृद्ध किया।


नृत्य (Dance)


भारतीय नृत्य शैलियों में महिलाओं का प्रमुख योगदान है। भरतनाट्यम, कथक, ओडिसी, कुचिपुड़ी, और मणिपुरी जैसी पारंपरिक नृत्य शैलियों में महिलाओं ने न केवल प्रतिभा का प्रदर्शन किया, बल्कि इन्हें संरक्षित और विकसित भी किया। शिवाजी राव तात्या काले, पार्वती कुमार, चित्रा और मोहिनी अट्टम के रूप में महिलाओं ने नृत्य की दुनिया में अपनी अमिट छाप छोड़ी। इन नृत्य शैलियों में महिलाएं न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।


मूर्तिकला (Sculpture):


मूर्तिकला के क्षेत्र में भी महिलाओं का योगदान महत्वपूर्ण रहा है। प्राचीन भारतीय मूर्तियों में देवी-देवताओं की मूर्तियां आमतौर पर महिलाओं को श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक मानकर बनाई जाती थीं। आधुनिक मूर्तिकला में महिलाओं की प्रेरणा और शिल्पकला को सम्मानित किया जाता है। नादिरा जीन, सारिका प्रधान, और सोनल जैन जैसी महिला कलाकारों ने भारतीय मूर्तिकला के क्षेत्र में योगदान दिया है।


लेखन और साहित्य (Literature and Writing)

महिलाओं का योगदान साहित्य में भी उल्लेखनीय है। मीराबाई, सूरदास, और कबीर के अलावा, 19वीं और 20वीं सदी में महिलाओं ने साहित्यिक गतिविधियों में भाग लिया और कई महान रचनाएँ कीं। सारिका राय, महादेवी वर्मा, इंदिरा गांधी, और कैलाश्वरी देवी जैसी महान महिला लेखिकाओं ने साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में योगदान दिया। उनकी कविताएँ, कहानियाँ, और निबंध आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।


फिल्म और रंगमंच (Film and Theater):


भारतीय फिल्म और रंगमंच में भी महिलाओं का योगदान अभूतपूर्व है। मीना कुमारी, नगमा, दीना पाठक, शबाना आज़मी, नसीम हामिद, और अन्य अभिनेत्री और नाटककारों ने भारतीय सिनेमा और रंगमंच को नया आयाम दिया है। महिला फिल्मकारों ने भी अपने योगदान से सिनेमा में नई दिशा दी। दीपा मेहता, शमशाद बेगम, और ज़ीनत अमान जैसी प्रमुख महिलाओं ने न केवल अभिनय बल्कि फिल्म निर्माण और निर्देशन में भी महत्वपूर्ण योगदान किया है।


लोक कला और हस्तशिल्प (Folk Art and Handicrafts):

भारतीय लोक कला में महिलाओं का योगदान विशेष रूप से देखा जाता है। महिलाएं विभिन्न हस्तशिल्प, जैसे रंगोली, साड़ी कढ़ाई, पतचitra, और जुटी बनाना आदि में पारंगत रही हैं। इन पारंपरिक कला रूपों को महिलाएं न केवल संरक्षित करती हैं बल्कि उन्हें नई पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य भी करती हैं।
कला के क्षेत्र में महिलाओं का योगदान बहुआयामी और अनमोल है। समाज में उनके महत्व को अब धीरे-धीरे पहचाना जा रहा है, और उनकी कला और संस्कृति के प्रति प्रेम उन्हें एक नया सम्मान प्रदान कर रहा है। महिलाओं की रचनात्मकता ने कला के हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी है, और यह योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनेगा।

कला में स्त्रीत्व का समाज पर प्रभाव


कला के माध्यम से स्त्रीत्व की प्रस्तुति ने समाज में महिलाओं की स्थिति, उनकी चुनौतियों और उनके अधिकारों के बारे में सोचने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित किया है। कला न केवल एक दृश्य संवाद है, बल्कि यह समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों को समझने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी है। कला में स्त्रीत्व की तलाश ने महिलाओं को अपनी पहचान, स्वतंत्रता और अधिकारों के प्रति सजग किया है।
कला में स्त्रीत्व का चित्रण समय-समय पर बदलता रहा है, और यह समाज के बदलते दृष्टिकोण और महिलाओं की बदलती भूमिका को दर्शाता है। प्रारंभ में देवियों और आदर्श रूपों में स्त्री का चित्रण हुआ, जबकि आधुनिक कला में स्त्री के संघर्ष, मानसिकता, और स्वतंत्रता की छवि को महत्व दिया गया। आजकल, कला में स्त्रीत्व की प्रस्तुति महिलाओं के भीतर की ताकत, संवेदनशीलता और सामाजिक स्थिति की गहरी समझ देती है, जो न केवल कला प्रेमियों के लिए, बल्कि समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश है।
( लेखिका रूमाना नाज़)
कला शिक्षिका
पी एम श्री केन्द्रीय विद्यालय अलमोडा

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